क्या नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य की आलोचना को नया आयाम दिया?

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क्या नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य की आलोचना को नया आयाम दिया?

सारांश

क्या नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य की आलोचना को नया आयाम दिया? जानिए उनके योगदान और विचारों के बारे में।

Key Takeaways

  • नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में आलोचना को नया आयाम दिया।
  • उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
  • उन्होंने प्रगतिशील आलोचना के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान स्थापित किया।
  • काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उनकी विद्या की शुरुआत हुई।
  • उनका व्यक्तित्व बहुआयामी और रोचक था।

नई दिल्ली, 28 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में नामवर सिंह का नाम एक ऐसा तारा है, जिसने आलोचना को न केवल एक नया स्वरूप दिया, बल्कि इसे एक रचनात्मक कला के रूप में स्थापित किया। वे हिंदी साहित्य के ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं, जिनकी रोशनी हमेशा साहित्य प्रेमियों का मार्गदर्शन करती रहेगी।

28 जुलाई, 1926 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में जन्मे नामवर सिंह हिंदी साहित्य के उन मूर्धन्य विद्वानों में से थे, जिन्होंने अपनी बेबाकी, गहन अध्ययन और प्रखर बुद्धिमत्ता से साहित्यिक जगत को समृद्ध किया।

नामवर सिंह का साहित्यिक सफर कविता से शुरू हुआ। 1941 में उनकी पहली कविता 'क्षत्रियमित्र' पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी असली पहचान एक आलोचक के रूप में बनी।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी करने के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। उनके गुरु, प्रख्यात साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनके भीतर आलोचना की गहरी समझ विकसित की।

नामवर सिंह ने समकालीन साहित्य को अपनी आलोचना का विषय बनाया और प्रगतिशील आलोचना के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान स्थापित किया। उनकी प्रमुख कृतियों में 'छायावाद', 'कविता के नए प्रतिमान', 'दूसरी परंपरा की खोज', 'इतिहास और आलोचना', 'कहानी : नई कहानी' और 'वाद विवाद संवाद' शामिल हैं। इन रचनाओं ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नई दिशा दी।

नामवर सिंह का व्यक्तित्व उनकी लेखनी की तरह ही रोचक और बहुआयामी था। 1959 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चंदौली से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इस घटना के बाद उन्हें बीएचयू से नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय, जोधपुर विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अध्यापन किया। जेएनयू में वे भारतीय भाषा केंद्र के संस्थापक और पहले अध्यक्ष रहे।

उनकी विद्वता केवल हिंदी तक सीमित नहीं थी। वे उर्दू, बांग्ला और संस्कृत में भी पारंगत थे। नामवर सिंह ने 'जनयुग' (साप्ताहिक) और 'आलोचना' (त्रैमासिक) जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया, जिसने हिंदी साहित्य में वैचारिक बहस को बढ़ावा दिया।

1971 में 'कविता के नए प्रतिमान' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उनकी आलोचना में बनारस की मिट्टी की सोंधी खुशबू थी, जो उनकी बेबाक और देशज शैली में झलकती थी। वे अपनी बात को सरल लेकिन गहरे अर्थों के साथ प्रस्तुत करते थे। साहित्य अकादमी की फेलोशिप जैसे सम्मान उनके योगदान का प्रमाण हैं।

19 फरवरी, 2019 को नई दिल्ली के एम्स में 92 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएं और विचार आज भी हिंदी साहित्य के अध्येताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी आलोचना ने साहित्य को न केवल समझने का नजरिया दिया, बल्कि उसे जीवंत बनाया।

Point of View

NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

नामवर सिंह का जन्म कब हुआ?
नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई, 1926 को हुआ था।
उनकी प्रमुख कृतियाँ कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख कृतियों में 'छायावाद', 'कविता के नए प्रतिमान', 'दूसरी परंपरा की खोज' आदि शामिल हैं।
नामवर सिंह ने किस विश्वविद्यालय से पीएचडी की?
उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पीएचडी की।
उनका निधन कब हुआ?
उनका निधन 19 फरवरी, 2019 को हुआ।
क्या नामवर सिंह ने राजनीति में भाग लिया?
हाँ, उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चंदौली से लोकसभा चुनाव लड़ा।