क्या नेपाल में चार चेहरों ने आंदोलन की दिशा बदली और ओली सरकार को हिलाया?

सारांश
Key Takeaways
- सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ युवा आंदोलन की शुरुआत हुई।
- चार प्रमुख नेताओं ने आंदोलन को नई दिशा दी।
- काठमांडू में प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं।
- सेना ने स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया है।
- युवाओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन और हस्ताक्षर अभियान चलाया।
नई दिल्ली, 11 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ युवाओं का आंदोलन देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया है। काठमांडू से लेकर विभिन्न शहरों में हुए प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थानों के साथ-साथ नेताओं के आवासों में आगजनी की घटनाएं हुईं।
स्थिति इतनी बिगड़ गई कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कई मंत्रियों को देश छोड़ना पड़ा। हालांकि, अब स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सेना सड़कों पर उतर आई है और शांति स्थापित करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
इस उथल-पुथल में चार प्रमुख चेहरों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है, जिनमें सुदन गुरुंग, बालेंद्र (बालेन) शाह, रबि लमिछाने और सुशीला कार्की शामिल हैं।
सुदन गुरुंग का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने इवेंट मैनेजमेंट और नाइट लाइफ इंडस्ट्री छोड़कर सामाजिक कार्यों में कदम रखा था। 2015 में आए भूकंप के दौरान उन्होंने ‘हमि नेपाल’ एनजीओ की स्थापना की थी। कोविड महामारी के दौरान भी उनके राहत कार्यों की चर्चा रही।
2020 के ‘इनफ इज इनफ’ आंदोलन से वे युवाओं के नेता बन गए। सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन को दिशा देने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर और किताबें लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करें। जब सरकार ने पुलिस को बल प्रयोग करने का आदेश दिया, तो सुदन ने तत्काल प्रधानमंत्री ओली से इस्तीफे की मांग की।
दूसरा महत्वपूर्ण चेहरा बालेंद्र शाह हैं, जो काठमांडू के मेयर हैं। वे सिविल इंजीनियर और रैप आर्टिस्ट से नेता बने। 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मेयर चुने गए और युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। 2023 में टाइम मैगजीन ने उन्हें टॉप 100 उभरते नेताओं में शामिल किया।
शाह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, जिससे युवा पीढ़ी उनसे गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए जेन-जी आंदोलन का समर्थन किया और राजनीतिक दलों से अपील की कि वे इस आंदोलन का राजनीतिक लाभ न उठाएं। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सख्त छवि और ओली सरकार से टकराव ने उन्हें युवाओं की उम्मीद बनाकर स्थापित कर दिया।
तीसरे बड़े चेहरे में रबि लमिछाने का नाम शामिल है। पत्रकार और टीवी एंकर के रूप में लोकप्रिय होने के बाद, उन्होंने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी बनाई और चुनावों में 20 सीटें जीतीं। वे गृह मंत्री भी बने, लेकिन सहकारी फंड घोटाले में फंसकर जेल गए।
फिर भी, उनकी पार्टी ने खुलकर युवाओं के आंदोलन का समर्थन किया और सांसदों ने एक साथ इस्तीफा देकर सरकार पर दबाव बनाया। आंदोलन की ताकत इतनी बढ़ गई कि युवाओं ने उन्हें जेल से छुड़ाने में भी मदद की।
इस आंदोलन को मजबूत आवाज देने में सुशीला कार्की का नाम भी महत्वपूर्ण है। वह नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश हैं और उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए।
आंदोलन के दौरान वे खुद सड़कों पर उतरीं और सरकार की गोलीबारी को ‘हत्या’ करार दिया। इसके बाद युवाओं ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया, जिसमें 1000 हस्ताक्षरों की शर्त पर 2500 से अधिक समर्थन जुटाया गया।