क्या रूस से लौटते वक्त नेपोलियन के सैनिकों की मौत 'रहस्यमयी बीमारी' से हुई थी? वर्षों बाद एक अध्ययन ने खोला राज
सारांश
Key Takeaways
- नेपोलियन की सेना की मौत का एक कारण पैराटाइफाइड बुखार था।
- जूं से होने वाले बैक्टीरिया भी सैनिकों को प्रभावित कर रहे थे।
- शोधकर्ताओं ने डीएनए एनालिसिस के माध्यम से नए तथ्य उजागर किए।
- अध्ययन में टाइफस के बैक्टीरिया के कोई निशान नहीं मिले।
- बीमारियों का संयोजन सैनिकों की मृत्यु का कारण बना।
नई दिल्ली, २५ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। जब नेपोलियन ने अक्टूबर १८१२ में अपनी सेना को रूस से पीछे हटने का आदेश दिया, तब एक बड़ी तबाही का सामना करना पड़ा। भूख, ठंड, थकावट और बीमारियों के कारण लगभग ३ लाख सैनिक मारे गए थे। कई वर्षों बाद, कुछ शोधकर्ताओं ने डीएनए एनालिसिस के आधार पर असली राज का खुलासा किया है। इस अध्ययन में बताया गया है कि जूं भी एक प्रमुख कारण था।
सामूहिक कब्र में दफनाए गए सैनिकों के दांतों के डीएनए एनालिसिस से पता चला है कि उन्हें पैराटाइफाइड बुखार और रिलैप्सिंग फीवर था। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने उन सैनिकों में दो अनजानी बीमारियों की पहचान की है, जो उनकी स्थिति के बारे में नई जानकारी प्रदान करती हैं।
यह अध्ययन करंट बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें इंस्टीट्यूट पाश्चर में माइक्रोबियल पैलियोजेनोमिक्स यूनिट के प्रमुख निकोलस रास्कोवन और उनकी टीम ने बताया कि कैसे लिथुआनिया के विनियस में एक ही सामूहिक कब्र में दफनाए गए सैनिकों के डीएनए के पिछले एनालिसिस से टाइफस और ट्रेंच फीवर के सबूत मिले थे।
हालांकि, उनका काम नेस्टेड पीसीआर नामक एक अत्यधिक संवेदनशील तकनीक पर आधारित था, जिसमें विशेष पैथोजेन के लिए नमूनों की स्क्रीनिंग शामिल थी।
शॉटगन सीक्वेंसिंग नामक एक अलग तकनीक का उपयोग करते हुए, रास्कोवन की टीम उन डीएनए के टुकड़ों को खोजने में सक्षम थी जो इंसानों में बीमारी उत्पन्न करने वाले १८५ बैक्टीरिया में से किसी से भी मेल खाते थे।
पहले जिन १३ सैनिकों का अध्ययन नहीं किया गया था, उनके दांतों से मिले डीएनए के आधार पर परिणामों से पता चला कि एक सैनिक जूं से होने वाले बैक्टीरिया बोरेलिया रिकरेंटिस से संक्रमित था, जिससे रिलैप्सिंग फीवर होता है, और चार अन्य सैनिक साल्मोनेला एंटेरिका नामक बैक्टीरिया के एक प्रकार से संक्रमित थे, जिससे पैराटाइफाइड बुखार होता है। यह बीमारी दूषित भोजन या पानी से फैलती है। टीम ने कहा कि इन चार सैनिकों में से एक को रिलैप्सिंग फीवर भी हो सकता था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये परिणाम नेपोलियन की ग्रैंड आर्मी के सैनिकों द्वारा अनुभव किए गए लक्षणों, जैसे बुखार और दस्त के विवरणों से मेल खाते हैं।
हालांकि, पिछले अध्ययन के विपरीत, टीम को टाइफस या ट्रेंच फीवर पैदा करने वाले बैक्टीरिया के कोई निशान नहीं मिले। रास्कोवन मानते हैं कि संभव है कि ये सैनिक इन बीमारियों से संक्रमित न हों, या उन्हें केवल हल्का संक्रमण हुआ हो। लेकिन इन परिणामों को दूसरे तरीके से भी समझाया जा सकता है, जैसे कि समय के साथ दशकों से दफन डीएनए का खराब होना, या उपलब्ध डीएनए की मात्रा का उपयोग की गई तकनीक की पहचान सीमा से कम होना।
शोधकर्ताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई स्टैटिस्टिकल टेस्ट और एनालिसिस किए कि उनके परिणाम सही हैं और असली संक्रमण की ओर इशारा करते हैं।
इसमें डीएनए विघटन के उन निशानों को देखना शामिल था जो असली पुराने डीएनए से अपेक्षित होते हैं, और यह पता लगाना कि डीएनए दोनों बैक्टीरिया के विकास संबंधी 'फैमिली ट्री' में कहां आता है।
वे लिखते हैं, “हमारे परिणामों को देखते हुए, इन सैनिकों की मौत का एक सही कारण थकान, ठंड और कई बीमारियों का संयोजन हो सकता है, जिसमें पैराटाइफाइड बुखार और जूं से होने वाला रिलैप्सिंग फीवर शामिल हैं। हालांकि यह आवश्यक नहीं कि जूं से होने वाला रिलैप्सिंग फीवर जानलेवा हो, लेकिन यह पहले से ही थके हुए व्यक्ति को बहुत कमजोर कर सकता है।”