क्या आध्यात्मिक विचारक ओशो ने खुशी से जीने का रहस्य बताया?

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क्या आध्यात्मिक विचारक ओशो ने खुशी से जीने का रहस्य बताया?

सारांश

ओशो रजनीश, जिनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को हुआ था, ने जीवन को उत्सव के रूप में जीने का संदेश दिया। उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने प्यार और स्वतंत्रता के महत्व पर क्या कहा?

Key Takeaways

  • ओशो ने जीवन को उत्सव मानने का संदेश दिया।
  • उन्होंने प्यार और स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया।
  • उनके प्रवचन आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।
  • ओशो ने कभी किताबें नहीं लिखीं, बल्कि कहानी और कविता के माध्यम से अपने विचार साझा किए।
  • उनकी समाधि पर लिखा है, "न कभी जन्मा, न कभी मरा।"

नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भी कोई "खुशी से जीने की कला" की चर्चा करता है, तो ओशो का नाम सबसे पहले आता है। 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में जन्मे चंद्रमोहन जैन को पूरी दुनिया ओशो रजनीश के नाम से जानती है।

ओशो को एक ऐसे आध्यात्मिक विचारक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने न तो परंपरा को स्वीकारा और न ही किताबों की सीमाओं को, बस उन्होंने जीवन को एक उत्सव में बदलने का संदेश दिया। उन्होंने कहा था, "दिल की सुनिए, यही सबसे बड़ा शिक्षक है।"

ओशो के विचारों का संकलन ओशो इंटरनेशनल पर उपलब्ध है। उनका कहना था, "मैं किसी को लंबे उपदेश नहीं देना चाहता। मैं तो बस अपने प्यार, खुशी और चुप्पी से यह एहसास दिलाना चाहता हूं कि आप इस ब्रह्मांड के केंद्र में हैं। हर व्यक्ति केंद्र में है, क्योंकि असल में केंद्र तो एक ही है।"

उनका मानना था कि प्यार का अर्थ है स्वतंत्रता, न कि कब्जा। रिश्तों में टूटने का मुख्य कारण एक-दूसरे की आजादी को छीनना है। उनका एक प्रसिद्ध कथन है, "जो व्यक्ति अकेले रहकर भी खुश है, वही सच्चा इंसान है।" यही बातें उन्हें आम जनता से लेकर हॉलीवुड की प्रमुख हस्तियों का प्रिय बनाती थीं।

वे महिलाओं को सृष्टि की सबसे सुंदर कृति मानते थे और उनके प्रवचन में प्रेम, ध्यान, मृत्यु जैसे विषयों पर खुलकर चर्चा होती थी। इस कारण, लाखों लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं, जबकि कुछ उन्हें विवादास्पद भी मानते हैं।

उन्होंने भारत में जबलपुर और पुणे से लेकर अमेरिका के ओरेगॉन तक कई आश्रम स्थापित किए। पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट आज भी लाखों लोगों को आकर्षित करता है। ओशो ने कभी किताबें नहीं लिखीं, बल्कि उन्होंने कहानी और कविता का सहारा लिया। उनके सैकड़ों प्रवचन रिकॉर्ड हुए हैं, जो अब 50 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं।

ओशो ने 19 जनवरी 1990 को पुणे में अपने जीवन का अंत किया। उनकी समाधि पर लिखा है, "न कभी जन्मा, न कभी मरा, केवल 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच इस पृथ्वी पर भ्रमण किया।"

आज भी ओशो के विचार युवाओं को प्रेरित करते हैं। वे सिखाते थे कि जीवन को गंभीरता से नहीं, बल्कि उत्सव के रूप में जीना चाहिए।

Point of View

जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे समय के साथ आगे बढ़ने वाले विचारक थे।
NationPress
10/12/2025

Frequently Asked Questions

ओशो का असली नाम क्या था?
ओशो का असली नाम चंद्रमोहन जैन था।
ओशो ने कब अपना जीवन समाप्त किया?
ओशो ने 19 जनवरी 1990 को पुणे में अपने जीवन का अंत किया।
ओशो का मुख्य संदेश क्या था?
ओशो का मुख्य संदेश था कि जीवन को एक उत्सव की तरह जीना चाहिए।
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