क्या बिहार में वोटर लिस्ट में नेपाली और बांग्लादेशी भी शामिल हैं? पप्पू यादव का सवाल!

सारांश
Key Takeaways
- महाभियोग की प्रक्रिया पर संसद में चर्चा हो सकती है।
- मतदाता सूची पुनरीक्षण में विदेशी नामों का विवाद है।
- चुनाव आयोग की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
- पप्पू यादव ने बिना सबूत नाम हटाने पर सवाल उठाए।
- बूथ स्तर अधिकारियों द्वारा जानकारी लेने की प्रक्रिया पर भी प्रश्न हैं।
पटना, 13 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। निर्दलीय सांसद राजेश रंजन, जिन्हें पप्पू यादव के नाम से जाना जाता है, ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव और बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि महाभियोग की प्रक्रिया पर संसद में चर्चा की जा सकती है और बहुमत या सहमति से निर्णय लिया जा सकता है। इसके साथ ही, बिहार में मतदाता पुनरीक्षण को लेकर कई प्रश्न उठाए।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस के साथ बातचीत में कहा कि भारत की न्यायिक और संसदीय प्रणाली दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और प्रतिष्ठित मानी जाती है। यदि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगते हैं, जैसे पक्षपात या सरकार को लाभ पहुंचाने की बातें, तो संविधान के तहत महाभियोग लाया जा सकता है।
पप्पू यादव ने कहा, "हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है। महाभियोग की प्रक्रिया पर संसद में चर्चा हो सकती है और बहुमत या सहमति से निर्णय लिया जा सकता है।"
बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण पर भी पप्पू यादव ने सवाल उठाए। चुनाव आयोग ने कहा है कि गहन पुनरीक्षण के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के कई लोग पाए गए हैं, जिनके नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे। इस पर यादव ने तंज कसते हुए कहा, "चुनाव आयोग बिना कागजात के कैसे दावा कर सकता है कि कोई नेपाल या बांग्लादेश का है? यदि आधार कार्ड, राशन कार्ड या अन्य दस्तावेज हैं, तो किस आधार पर लोगों को सूची से हटाया जाएगा?"
उन्होंने यह भी सवाल किया कि जब कोई पहचान पत्र या दस्तावेज मांगा ही नहीं जा रहा, तो केवल नाम और पिता का नाम पूछकर कैसे तय हो रहा है कि कोई विदेशी है। पप्पू यादव ने इस प्रक्रिया को गलत और संदिग्ध बताया। उन्होंने कहा, "विपक्ष इस मुद्दे को इसलिए उठा रहा है क्योंकि बिना ठोस सबूत के लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं। यह चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है।"
उन्होंने आरोप लगाया कि बूथ स्तर अधिकारी (बीएलओ) बिना दस्तावेजों की जांच के केवल मौखिक जानकारी ले रहे हैं, जो कि गलत है। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे को लेकर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रहा है, क्योंकि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। सांसद पप्पू यादव ने कहा कि बिहार में पहले दस चुनाव मौजूदा मतदाता सूची के आधार पर हुए हैं, तो अब अचानक यह पुनरीक्षण क्यों? पप्पू यादव ने इस प्रक्रिया को संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया और मांग की कि इसे पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाए।