क्या पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलेगा?

सारांश
Key Takeaways
- पितृपक्ष का आरंभ 8 सितंबर से होता है।
- पूर्वजों के लिए श्राद्ध और तर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- इस दौरान पितर धरती पर आते हैं।
- घर की शुद्धि और दान आवश्यक हैं।
- पंचक के प्रभाव के कारण शुभ कार्यों को टालना चाहिए।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पितृपक्ष का आरंभ होता है। यह समय श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इस अवधि में पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण एवं पिंडदान के माध्यम से संतोष प्राप्त करते हैं।
इस अवसर पर श्रद्धालु पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करते हैं। 8 सितंबर को आश्विन मास का शुभारंभ हो रहा है।
पंचांग के अनुसार, 8 सितंबर को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक प्रभावी रहेगी। इसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ होती है। इस दिन पूर्व भाद्रपद नक्षत्र रात्रि 8 बजकर 2 मिनट तक और इसके बाद उत्तर भाद्रपद नक्षत्र प्रभावी रहता है। दिन में धृति योग, फिर शूल योग और अंततः गण्ड योग का क्रम बनता है।
ग्रहों की स्थिति पर नजर डालें तो सूर्य सिंह राशि में स्थित है और चंद्रमा दोपहर 02:29 बजे तक कुंभ राशि में रहकर मीन राशि में प्रवेश करते हैं। दिन का सूर्योदय 06:03 बजे और सूर्यास्त 06:34 बजे, वहीं चंद्रोदय शाम 06:58 बजे और चंद्रास्त अगली सुबह 06:24 बजे है।
शुभ मुहूर्तों की बात करें तो ब्रह्म मुहूर्त 04:31 से 05:17 बजे तक है। अभिजीत मुहूर्त 11:53 से 12:44 बजे तक और विजय मुहूर्त 02:24 से 03:14 बजे तक है। गोधूलि और संध्या मुहूर्त भी क्रमशः सूर्यास्त के आसपास के समय में प्रभावी हैं। वहीं, अशुभ समय में राहुकाल 07:37 से 09:11 बजे तक और गुलिक काल 01:52 से 03:26 बजे तक है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत वर्जित मानी जाती है।
इस दिन पंचक का प्रभाव भी पूरे दिन है, जिसके कारण शुभ कार्यों, खासकर गृह निर्माण, विवाह या यात्रा को टालना उचित माना जाता है। दिशाशूल पूर्व दिशा में होने के कारण उस दिशा की यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है।
श्राद्ध से जुड़ी धार्मिक परंपराओं के अनुसार, प्रतिपदा तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु इसी तिथि को हुई हो, या जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। विशेष रूप से नाना-नानी या मातृ पक्ष के पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
श्राद्ध करते समय घर की शुद्धि, गंगाजल का छिड़काव, दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण, और पवित्र भावना से ब्राह्मण भोज एवं दान देना आवश्यक है। दूध से बनी खीर, सफेद पुष्प, तिल, शहद, गंगाजल, और सफेद वस्त्र श्राद्ध में विशेष फलदायी माने जाते हैं। पंचबलि का अर्पण, गोदान, अन्न, और वस्त्र का दान पितरों को प्रसन्न करता है और परिवार में सुख-समृद्धि लाता है।