क्या अपने नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना हमारा साझा कर्तव्य है?
सारांश
Key Takeaways
- हर व्यक्ति को समान अधिकार और गरिमा मिलती है।
- राष्ट्रपति ने मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए सभी नागरिकों का आह्वान किया।
- महिलाओं का सशक्तिकरण मानवाधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- भारत ने मानवाधिकारों के वैश्विक ढांचे को आकार दिया है।
- सभी नागरिकों को विकास में भागीदारी करनी चाहिए।
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मानवाधिकार दिवस समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने यह कहा कि मानवाधिकार दिवस हमें याद दिलाता है कि सभी मानवाधिकारों को अलग नहीं किया जा सकता है और ये एक न्यायपूर्ण, समतावादी तथा करुणामय समाज की नींव हैं।
उन्होंने कहा कि 70 वर्ष पहले, दुनिया ने एक सरल लेकिन क्रांतिकारी सत्य को स्वीकार किया कि हर व्यक्ति गरिमा और अधिकारों में स्वतंत्र और समान रूप से जन्म लेता है। मानवाधिकारों के वैश्विक ढांचे को आकार देने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने मानवीय गरिमा, समानता और न्याय पर आधारित एक बेहतर दुनिया की परिकल्पना की थी।
राष्ट्रपति ने अंत्योदय दर्शन के अनुसार, वंचितों सहित सभी के मानवाधिकारों की गारंटी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की दिशा में हर नागरिक का सक्रिय योगदान आवश्यक है। तभी विकास को सही मायने में समावेशी कहा जाएगा।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मानवाधिकार हमारे संविधान की आत्मा में निहित हैं। ये मानवाधिकार सामाजिक लोकतंत्र को प्रोत्साहित करते हैं। इनमें भयमुक्त जीवन जीने का अधिकार, बाधाओं के बिना शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, शोषणमुक्त काम करने का अधिकार और गरिमापूर्ण वृद्धावस्था बिताने का अधिकार शामिल हैं। हमने विश्व को यह बताया है कि मानवाधिकारों को विकास से अलग नहीं किया जा सकता। भारत ने हमेशा इस स्थायी सत्य को स्वीकार किया है: 'न्याय के बिना शांति नहीं और शांति के बिना न्याय नहीं।'
राष्ट्रपति ने यह जानकर खुशी व्यक्त की कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, न्यायपालिका और नागरिक समाज ने मिलकर हमारे संविधान के विवेक के रक्षक के रूप में कार्य किया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं और बच्चों से संबंधित मुद्दों का स्वतः संज्ञान लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि मानवाधिकार आयोग ने इस वर्ष अपने स्थापना दिवस समारोह के दौरान कैदियों के मानवाधिकारों पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन चर्चाओं से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं का सशक्तिकरण और उनके कल्याण मानवाधिकारों के बुनियादी स्तंभ हैं। उन्होंने यह जानकर खुशी व्यक्त की कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा पर एक सम्मेलन आयोजित किया है। उन्होंने कहा कि ऐसे सम्मेलनों से प्राप्त निष्कर्ष महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण में सहायक साबित हो सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) राज्य और समाज के कुछ आदर्शों को साकार करता है। भारत सरकार इन आदर्शों को अभूतपूर्व स्तर पर लागू कर रही है। पिछले एक दशक में हमने अपने राष्ट्र को एक नई दिशा में बढ़ते देखा है—विशेषाधिकार से सशक्तिकरण की ओर और दान से अधिकारों की ओर। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है कि स्वच्छ जल, बिजली, खाना पकाने की गैस, स्वास्थ्य सेवाएं, बैंकिंग सेवाएं, शिक्षा और बेहतर स्वच्छता जैसी दैनिक आवश्यकताएं सभी को उपलब्ध हों। इससे हर परिवार का उत्थान होता है और उनकी गरिमा सुनिश्चित होती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में सरकार ने वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों से संबंधित चार श्रम संहिताओं के माध्यम से महत्वपूर्ण सुधार लागू किया है। यह क्रांतिकारी परिवर्तन भविष्य के लिए एक सक्षम कार्यबल और मजबूत उद्योगों की नींव रखता है।
राष्ट्रपति ने सभी नागरिकों से अपील की कि मानवाधिकार सिर्फ सरकारों, एनएचआरसी, नागरिक समाज संगठनों या अन्य संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अपने नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना हमारा साझा कर्तव्य है। एक दयालु और जिम्मेदार समाज का सदस्य होने के नाते यह कर्तव्य हम सभी का है।