क्या प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखा गया है?

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क्या प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखा गया है?

सारांश

प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखा गया है, जो जन-सेवा की भावना का प्रतीक बनकर उभरेगा। यह परिवर्तन ना केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में जनसशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पढ़िए इसका महत्व और प्रभाव।

Key Takeaways

  • सेवा तीर्थ नाम जन-सेवा की भावना को दर्शाता है।
  • यह परिवर्तन लोकतंत्र में जनसशक्तिकरण का संकेत है।
  • राजभवनों का नाम लोक भवन रखा जा रहा है।
  • यह बदलाव पारदर्शिता और जनसहभागिता को बढ़ावा देगा।
  • सरकार अब जनकल्याण के लिए एक प्रतीक बनेगी।

नई दिल्ली, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश में जन-सेवा की भावना को प्राथमिकता देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का नाम अब ‘सेवा तीर्थ’ रखा जाएगा। यह नाम उस नागरिक-प्रथम नीति का प्रतीक है, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा जोर दिया है।

सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत लगभग पूर्ण हो चुका यह नया परिसर न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय का केंद्र बनेगा, बल्कि इसमें कैबिनेट सचिवालय, नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सचिवालय और भारत हाउस भी शामिल होंगे, जहां वैश्विक नेताओं के साथ उच्चस्तरीय बैठकों का आयोजन किया जाएगा।

‘सेवा तीर्थ’ सार्वजनिक सेवा की पवित्र भावना का प्रतीक होगा, जहां प्रत्येक निर्णय राष्ट्र और 140 करोड़ नागरिकों के कल्याण के लिए लिया जाएगा।

देशभर में शासन से संबंधित भवनों के नामों में हो रहा यह परिवर्तन न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि यह जन-सशक्तिकरण की दिशा में एक गहन सांस्कृतिक बदलाव का संकेत देता है। राजभवनों का नया नाम ‘लोक भवन’ रखा जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि सत्ता जनता की है और शासन जनसेवा के लिए है।

हाल ही में देहरादून, नैनीताल (उत्तराखंड), तिरुवनंतपुरम (केरल), अगरतला (त्रिपुरा) और कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के राजभवनों ने भी औपचारिक रूप से लोक भवन नाम ग्रहण किया है। यह परिवर्तन सहजता से अपनाया जा रहा है और इसे व्यापक समर्थन प्राप्त हो रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ये बदलाव केवल नाम परिवर्तन नहीं हैं, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के बदलते मूल्यों को दर्शाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में शासन व्यवस्था के हर प्रतीक में सेवा, कर्तव्य और लोक-शक्ति की भावना को मजबूती से स्थापित किया गया है।

यह परिवर्तन केवल इमारतों या मार्गों के नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शासन के मूल तंत्र में जनसहभागिता, पारदर्शिता और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की दिशा में एक बड़े विचारात्मक बदलाव का संकेत है।

‘सेवा तीर्थ’ की स्थापना के साथ भारत एक ऐसे लोकतांत्रिक युग की ओर बढ़ रहा है जहां सरकार केवल अधिकार का केंद्र नहीं, बल्कि जनकल्याण की पवित्र सेवाभावना का प्रतीक बनेगी।

Point of View

बल्कि जनता की भागीदारी और शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।
NationPress
09/12/2025

Frequently Asked Questions

सेवा तीर्थ का क्या महत्व है?
सेवा तीर्थ नाम जन-सेवा की भावना को दर्शाता है और यह नागरिक-प्रथम नीति का प्रतीक है।
क्या यह बदलाव सिर्फ नाम का है?
नहीं, यह बदलाव शासन के मूल तंत्र में जनसहभागिता और पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
लोक भवन नाम का क्या मतलब है?
लोक भवन नाम यह दर्शाता है कि सत्ता जनता की है और शासन जनसेवा के लिए है।
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