क्या पुणे पोर्श हादसे में आरोपी पर नाबालिग के रूप में चलाए जाएंगे मुकदमे?

सारांश
Key Takeaways
- किशोर न्याय बोर्ड का निर्णय आरोपी को नाबालिग के रूप में मुकदमा चलाने का है।
- पुणे पुलिस ने वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की मांग की थी।
- यह मामला सामाजिक और न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है।
- बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
- सड़क सुरक्षा पर निबंध लिखने की शर्तें विवाद का कारण बनीं।
पुणे, 15 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। पुणे पोर्श एक्सीडेंट के चर्चित मामले में एक नया मोड़ आया है। किशोर न्याय बोर्ड ने मंगलवार को यह स्पष्ट किया है कि इस मामले में 17 वर्षीय आरोपी पर नाबालिग के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा, जबकि पुणे पुलिस ने वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने की मांग की थी।
यह हादसा 19 मई को पुणे में हुआ था, जब एक तेज रफ्तार पोर्श कार ने दो आईटी पेशेवरों, अनीश अवधिया और अश्विनी कोस्टा, को कुचल दिया, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। आरोपी किशोर कथित तौर पर नशे की हालत में था और उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
पुणे पुलिस ने इस घटना को गंभीर अपराध मानते हुए किशोर पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का आग्रह किया। पुलिस का तर्क था कि आरोपी ने न केवल दो लोगों की जान ली, बल्कि उसने सबूतों से छेड़छाड़ करने की भी कोशिश की, जिससे उसकी मंशा और गंभीरता स्पष्ट होती है।
हालांकि, बचाव पक्ष के वकील ने तर्क किया कि आरोपी को नाबालिग के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसके बाद, किशोर न्याय बोर्ड ने पुलिस की याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय लिया कि आरोपी पर नाबालिग के रूप में मुकदमा चलेगा।
यह मामला विवादों में रहा है। घटना के बाद आरोपी को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने जैसी शर्तों के साथ जमानत दी गई थी, जिससे देशभर में आलोचना हुई।
सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में इस पर सवाल उठे। आलोचना के बाद आरोपी की जमानत रद्द कर दी गई और उसे सुधार गृह में भेज दिया गया।
इस बीच, 25 जून 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड द्वारा सुधार गृह भेजने के निर्णय को अवैध मानते हुए लड़के की तत्काल रिहाई का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि किशोरों के मामलों में कानून का सख्ती से पालन होना चाहिए और न्याय प्रक्रिया में कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।