क्या राज्यसभा में डिजिटल क्रिएटर्स की आवाज बने राघव चड्ढा, कॉपीराइट कानून में बदलाव की मांग?
सारांश
Key Takeaways
- राघव चड्ढा का राज्यसभा में डिजिटल क्रिएटर्स के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया मुद्दा।
- कॉपीराइट एक्ट, 1957 में संशोधन की आवश्यकता।
- डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स का समाज में महत्वपूर्ण योगदान।
- फेयर यूज के तहत उपयोग को पायरेसी से अलग करना।
- प्रोपोर्शनैलिटी डॉक्ट्रिन का लागू होना।
नई दिल्ली, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा ने गुरुवार को राज्यसभा में डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स के हितों को उठाया। उन्होंने कॉपीराइट एक्ट, 1957 में महत्वपूर्ण संशोधन की मांग करते हुए कहा कि आज लाखों भारतीय डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर मेहनत करके अपनी आजीविका कमा रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत और कमाई कुछ ही मिनटों में मनमाने एल्गोरिदम के कारण समाप्त हो जाती है।
शून्यकाल में बोलते हुए राघव चड्ढा ने कहा कि भारत के डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स अब देश के 'ग्रासरूट कम्युनिकेटर' बन चुके हैं। वे शिक्षक, समीक्षक, व्यंग्यकार, कलाकार, संगीतकार, एंटरटेनर और इंफ्लुएंसर के रूप में समाज को जानकारी और मनोरंजन प्रदान कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि यूट्यूब चैनल या इंस्टाग्राम पेज इन लोगों के लिए केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि उनकी कमाई का मुख्य स्रोत और सबसे बड़ा एसेट है, जो वर्षों की मेहनत से तैयार होता है।
राघव चड्ढा ने चिंता जताई कि कई बार केवल 2 से 3 सेकंड के वीडियो क्लिप, बैकग्राउंड म्यूजिक, या किसी कंटेंट के इस्तेमाल पर कॉपीराइट स्ट्राइक लग जाती है और पूरा चैनल या पेज हटा दिया जाता है। वर्षों की मेहनत कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाती है। आजीविका का निर्णय कानून से होना चाहिए, न कि मनमाने एल्गोरिदम से।
उन्होंने स्पष्ट किया कि वे कॉपीराइट धारकों के अधिकारों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन 'फेयर यूज' को पायरेसी के बराबर नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कंटेंट का उपयोग टिप्पणी, आलोचना, व्यंग्य, शिक्षा, समाचार या ट्रांसफॉर्मेटिव उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो उसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए।
राघव चड्ढा ने कहा, "डर के माहौल में न तो इनोवेशन पनप सकता है और न ही क्रिएटिविटी जीवित रह सकती है।"
आप सांसद ने बताया कि भारत का कॉपीराइट कानून 1957 में बना था, जब न इंटरनेट था, न कंप्यूटर, न यूट्यूब और न ही इंस्टाग्राम। इस कानून में डिजिटल क्रिएटर्स की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और फेयर डीलिंग की बात केवल किताबों, मैगजीन और जर्नल्स के संदर्भ में की गई है।
राघव चड्ढा ने सदन के सामने तीन प्रमुख मांगें रखीं। कॉपीराइट एक्ट में संशोधन कर डिजिटल फेयर यूज को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए, जिसमें ट्रांसफॉर्मेटिव यूज, व्यंग्य, आलोचना, आकस्मिक उपयोग, सीमित उपयोग, शैक्षणिक और जनहित से जुड़ा गैर-व्यावसायिक उपयोग शामिल हो।
कॉपीराइट लागू करने में 'प्रोपोर्शनैलिटी डॉक्ट्रिन' लाई जाए, ताकि कुछ सेकंड के उपयोग पर पूरा कंटेंट न हटाया जाए। किसी भी कंटेंट को हटाने से पहले अनिवार्य 'ड्यू प्रोसेस' सुनिश्चित किया जाए।