क्या उद्योग–अनुसंधान और अकादमिक सहयोग रक्षा क्षमता में वृद्धि के लिए अनिवार्य है?

सारांश
Key Takeaways
- उद्योग और अनुसंधान का सहयोग आवश्यक है।
- आत्मनिर्भरता के लिए नवाचार जरूरी है।
- रक्षा उत्पादन को गति देने के लिए मजबूत रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए।
- स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- सहयोग से रोजगार सृजन में मदद मिलेगी।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह का मानना है कि सार्वजनिक और निजी उद्योग, डीआरडीओ जैसे अनुसंधान संस्थान और अकादमिक जगत के बीच और अधिक सहयोग की आवश्यकता है। आज के तेजी से बदलते समय में सशस्त्र बलों की संचालनात्मक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उन्होंने इस आवश्यकता पर बल दिया। शुक्रवार को वह सेना की दक्षिणी कमांड द्वारा पुणे में आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
इस अवसर पर रक्षा सचिव ने कहा कि तकनीकी श्रेष्ठता और औद्योगिक सामर्थ्य युद्ध के परिणाम को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि रक्षा उद्योग हमारे विनिर्माण क्षेत्र की गति के साथ कदमताल करे, ताकि वर्ष 2047 तक विकसित भारत और 30 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त हो सके।
उन्होंने कहा कि इस बदलाव से भारत को नवाचार आधारित राष्ट्र बनने, स्टार्टअप संस्कृति को मजबूत करने, औद्योगिक आधार को विस्तृत करने, जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने और रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। सिंह ने वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मौजूदा समय में चल रहे संघर्षों ने प्रतिस्पर्धात्मक लोकलुभावनवाद, आर्थिक संरक्षणवाद, बहुपक्षीय संस्थाओं के क्षरण और बढ़ते राष्ट्रवाद को जन्म दिया है। ऐसे समय में हमें अपनी सॉफ्ट पावर को मजबूत करना होगा।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए बताया कि डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2009 और डिफेंस एक्विजिशन प्रक्रिया 2020 को अधिक गतिशील, सक्रिय और परिणामोन्मुख बनाया गया है। साथ ही निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स के लिए इस क्षेत्र में बाधाओं को कम करने, जमीनी स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहित करने और प्रतिस्पर्धी बोली प्रणाली को लागू करने की दिशा में कार्य किया गया है। रक्षा सचिव ने निजी उद्योग से आग्रह किया कि वे अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षमता में निवेश बढ़ाएं।
उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में ऑर्डर समय-समय पर ही मिलते हैं, लेकिन यदि आपके पास तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षमता है तो आप घरेलू व निर्यात ऑर्डरों के संयोजन से स्वयं को स्थिर रख सकते हैं। इस अवसर पर सदर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ ने कहा कि रक्षा आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए ‘समग्र राष्ट्र’ दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।
कार्यक्रम में सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारी, पूर्व सैनिक, विद्वान, डीआरडीओ, सार्वजनिक उपक्रम, निजी उद्योग व अकादमिक जगत के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस संगोष्ठी में रिवर्स इंजीनियरिंग व उद्योग द्वारा अकादमिक शोध को फंडिंग देकर विशेष तकनीकों को गति देने पर चर्चा हुई। इसके अलावा स्वदेशी नवाचार में उत्प्रेरक के रूप में डीआरडीओ की भूमिका को मजबूत करने पर भी विचार किया गया। निजी उद्योग, पीएसयू और अकादमिक जगत के बीच सहयोग बढ़ाकर रक्षा उत्पादन को गति देने की जरूरत पर बल दिया गया।
इस कार्यक्रम के दौरान अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसका उद्देश्य सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना तथा भविष्य-तैयार क्षमताओं का निर्माण करना था। संगोष्ठी में आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने पर जोर दिया गया।