क्या आरएसएस को गुरु दक्षिणा से मिलता है धन? मोहन भागवत ने संघ की यात्रा का किया वर्णन
सारांश
Key Takeaways
- आरएसएस का धन 'गुरु दक्षिणा' से जुटाया जाता है।
- कार्यकर्ताओं का समर्पण और त्याग महत्वपूर्ण है।
- संघ का इतिहास समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरणादायक है।
- समर्पण की कहानियां युवा पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।
- संघ की फंडिंग व्यक्तिगत जीवन में कमी लाने से होती है।
जयपुर, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन की यात्रा का विस्तृत वर्णन किया। जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में, मोहन भागवत ने संघ के प्रति कार्यकर्ताओं की निस्वार्थ भावना और संगठन को मजबूत करने के लिए धन जुटाने जैसे मुद्दों पर चर्चा की।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। आरंभ में संघ का कार्य बहुत सीमित और उपेक्षित था। कई लोग संघ के कार्यों और डॉक्टर हेडगेवार पर हंसते थे। मोहन भागवत ने कहा, "लोग उपहास करते थे कि 'नाक साफ करने में असमर्थ, ऐसे लोग राष्ट्र निर्माण की बात कर रहे हैं।' संघ के विचारों को लेकर समाज की सोच भी नकारात्मक थी।"
उन्होंने बताया कि पहले काम करने के लिए शरीर की चुस्ती भी नहीं थी। एक प्रचारक का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत ने कहा, "उन्हें भागलपुर भेजा गया था। डॉक्टर हेडगेवार ने यात्रा के लिए एक टिकट की व्यवस्था की थी, और उसके पास केवल सवा रुपया था। उन्होंने बिहार में अपने निवास का प्रबंधन स्थानीय ट्रेनों में किया। रातभर वे उसी में बिताते थे, और दिन में पूरे नगर में घर-घर जाकर काम करते थे। खाने की व्यवस्था नहीं थी, तो वे कुछ चने खरीदकर पेट भरते थे।"
संघ के प्रति कार्यकर्ताओं की निस्वार्थता के बारे में बताते हुए मोहन भागवत ने कहा, "एक स्वयंसेवक के घर पर एक ब्राह्मण को बुलाया गया। जब ब्राह्मण आया, तो मां ने उसे रसोई में खाना परोसा और ताजी रोटियां दीं। उन्हें समझ में आया कि इस युवक ने हिंदू समाज के कल्याण के लिए अपने करियर के सारे अवसर त्याग दिए हैं।"
संघ प्रमुख ने बताया कि उस मां ने ब्राह्मण के लिए सुबह-शाम का खाना तैयार किया और यह संकल्प लिया कि यदि वे खाना खाने नहीं आएंगे तो वह भी नहीं खाएंगी। यही परंपरा तीन पीढ़ियों तक चलती रही।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की फंडिंग के बारे में मोहन भागवत ने कहा कि यह 'गुरु दक्षिणा' के माध्यम से होती है। संघ के सदस्य इसे अपने खर्च पर चलाते हैं। वे केवल खर्च नहीं करते, बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में कुछ कमी करके बचा हुआ धन भी संघ के लिए समर्पित करते हैं।