क्या रुद्रप्रयाग पहुंची श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की पवित्र छड़ी यात्रा?

सारांश
Key Takeaways
- धर्म की पुनर्स्थापना का संदेश
- संस्कृति और परंपरा का संरक्षण
- पर्यावरण संरक्षण का महत्व
- भक्ति की भावना का उदय
- आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव
रुद्रप्रयाग, 9 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम ने अपना रंग बदल लिया है। पहाड़ी इलाकों में कहीं बारिश हो रही है तो कहीं इस मौसम से पहले ही बर्फबारी का नज़ारा देखने को मिल रहा है। इस बर्फबारी के बीच केदारनाथ और रुद्रप्रयाग में भक्ति का एक अनोखा रूप नजर आ रहा है।
आदि गुरु शंकराचार्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की पवित्र छड़ी यात्रा अब रुद्रप्रयाग पहुंच गई है। इस यात्रा में “हर हर महादेव” के जयकारे गूंज रहे हैं और सभी भक्त बाबा की भक्ति में मग्न हैं।
यह यात्रा सतानम धर्म और आस्था का प्रतीक मानी जाती है। इसका प्रमुख उद्देश्य देश में धर्म की पुनर्स्थापना करना और पर्यटन को बढ़ावा देना है। इस यात्रा का संबंध गुरु आदि शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा से है। कहा जाता है कि अतीत में मठ-मंदिरों पर कई अत्याचार हुए और धर्म को बहुत नुकसान हुआ। यहाँ तक कि भगवान बद्रीनाथ जी की मूर्ति को नारद कुंड में फेंक दिया गया था। इस बढ़ते अत्याचार को देखते हुए, आदि गुरु शंकराचार्य ने धर्म की पुनर्स्थापना के लिए यह यात्रा निकाली थी। तब से लेकर आज तक जूना अखाड़ा हर वर्ष चारों धामों के मार्ग से यह छड़ी यात्रा निकालता है।
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की छड़ी यात्रा सबसे पहले कोटेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करेगी और उसके बाद बाबा केदारनाथ के मंदिर जाएगी, जिसके बाद गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन भी किए जाएंगे।
जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर वीरेंद्र महाराज ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, “यात्रा धर्म और संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। इस यात्रा का लक्ष्य गुरु आदि शंकराचार्य की परंपरा को बनाए रखना भी है। भले ही उनका जन्म केरल में हुआ हो, लेकिन हर संत और आचार्य के लिए उत्तराखंड की तपोभूमि जन्म और कर्मभूमि दोनों है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह यात्रा हमारी संस्कृति का प्रतीक है। हिमालय की सुरक्षा, प्राकृतिक संरक्षण और वृक्षारोपण जैसे मुद्दे उत्तराखंड के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
वहीं, रुद्रप्रयाग के विधायक भरत सिंह चौधरी ने श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की पवित्र छड़ी यात्रा का स्वागत फूल माला से किया और खुद भी इस यात्रा में शामिल हुए। उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि यह यात्रा देवभूमि की सांस्कृतिक पहचान और सनातन परंपरा की जीवंत मिसाल है। आज हमने रुद्रप्रयाग की जनता की ओर से साधू-संतों का अभिनंदन किया है और इस परंपरा को बनाए रखने के लिए हम सभी संतों का आभार व्यक्त करते हैं।
बता दें कि यह यात्रा 32 दिन तक चलती है, जिसमें यात्रा उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ से होकर आदि कैलाश ओम पर्वत की दिशा में बढ़ती है।