क्या रूस के थिएटर्स में बॉलीवुड का जलवा है?
सारांश
Key Takeaways
- रूस में बॉलीवुड फिल्में भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं।
- सोवियत दर्शक राज कपूर के फिल्मों से प्रभावित हुए।
- फिल्मों ने दोस्ती और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
मुंबई, 5 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। रूस और भारत के बीच की मित्रता केवल राजनैतिक नहीं थी, बल्कि फिल्मों के माध्यम से भी गहराई में चली गई। 1950 के दशक में जब सोवियत संघ (अब रूस) के लोग पहली बार राज कपूर की फिल्मों से परिचित हुए, तब से लेकर 1991 तक, भारतीय फिल्मों ने वहां की सिनेमा संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। रूस में बॉलीवुड के प्रति इतनी दीवानगी थी कि लोग घंटों तक कतार में खड़े रहकर टिकट खरीदते थे। आइए जानते हैं रूस में अब तक की सबसे लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मों के बारे में और क्यों वहां के लोग इन्हें आज भी याद करते हैं।
आवारा (1950) - राज कपूर की 'आवारा' सोवियत दर्शकों के लिए एक क्रांति थी। राज कपूर ने इसमें खुद अभिनय किया और अच्छाई और बुराई के बीच का अंतर दिखाया। यह फिल्म रूस में चार साल बाद रिलीज हुई और 63.7 मिलियन टिकट बिके। सोवियत लोग इसे केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक संस्कृति के रूप में अपनाते थे।
बॉबी (1973) - राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर की 'बॉबी' भी रूस में जबरदस्त हिट रही। गरीब लड़की और अमीर लड़के की प्रेम कहानी को देखने के लिए 62.6 मिलियन लोगों ने टिकट खरीदे। सोवियत दर्शक इस फिल्म में नई तरह की कहानी और स्टाइल देखकर काफी प्रभावित हुए।
डिस्को डांसर (1982) - यह फिल्म सोवियत लड़कों के लिए सबसे खास थी। जिमी और मनोरंजक संगीत ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। 60.9 मिलियन लोगों ने इसे देखा। लोग खासतौर पर 'जिम्मी जिम्मी, आजा आजा' गाने और फिल्म में दिखाए गए स्टाइल से प्रभावित हुए।
बारूद (1976) - 'बारूद' एक्शन और रोमांस का अनूठा मेल था। अनूप नामक लड़के ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने का निश्चय किया, लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब उसे अपने दुश्मन की बेटी से प्यार हो जाता है। सोवियत दर्शकों ने इसकी 60 मिलियन टिकटों की बिक्री के साथ जमकर तारीफ की।
सीता और गीता (1972) - हेमा मालिनी की फिल्म 'सीता और गीता' को देखने के लिए 55.2 मिलियन लोगों ने टिकट खरीदे। दो जुड़वां बहनों की कहानी ने सोवियत दर्शकों के दिलों को छू लिया। यह फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि किर्गिस्तान में एक माता-पिता ने अपनी जुड़वां बच्चियों के नाम सीता और गीता रख दिए।
ममता (1966) - सुचित्रा सेन की 'ममता' को 52.1 मिलियन लोगों ने देखा। यह कहानी एक महिला देवयानी की है, जो बिना प्यार के शादी करती है और फिर अपनी बेटी से अलग हो जाती है। सोवियत लोग इसकी भावनाओं और मातृत्व की कहानी को बेहद पसंद करते थे।
फूल और पत्थर (1966) - मीना कुमारी और धर्मेंद्र की फिल्म 'फूल और पत्थर' के 45.4 मिलियन टिकट बिके। एक बीमार लड़की और चोर की कहानी ने दर्शकों के दिलों को छू लिया।
सोवियत दर्शकों ने भारतीय फिल्मों को केवल मनोरंजन के रूप में नहीं देखा, बल्कि इनमें दिखाई गई अच्छाई और बुराई, प्यार और परिवार, संघर्ष और जीत जैसी भावनाओं को अपने जीवन से जोड़ा। रूस में आज भी बॉलीवुड फिल्म फेस्टिवल और रेट्रो शो बड़े उत्साह से आयोजित होते हैं।