क्या यह मंदिर आज भी ब्रह्मचारी रूप में तपस्या कर रहे भगवान शिव का स्थान है?
सारांश
Key Takeaways
- सबरीमाला मंदिर की दीक्षा 41 दिनों की होती है।
- भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी रूप में तपस्या कर रहे हैं।
- महिलाओं का आना अब वर्जित नहीं है।
- मकरविलक्कु उत्सव बहुत प्रसिद्ध है।
- धर्म, जाति का भेदभाव नहीं होता।
नई दिल्ली, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कई अद्वितीय तीर्थ स्थल हैं, जहां केवल दर्शन करने से ही जीवन की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। इन प्रमुख तीर्थ स्थलों में सबरीमाला मंदिर एक प्रसिद्ध स्थान है।
यह मंदिर अपनी दीक्षा और कठिन तपस्या के लिए जाना जाता है। यहां 41-दिवसीय व्रत (दीक्षा) होता है, जिसमें भक्तों को 41 दिनों तक सात्विक भोजन, कठिन पहाड़ी यात्रा और ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर का ब्रह्मचर्य से गहरा संबंध है। इस मंदिर में भगवान अयप्पा तपस्या में लीन हैं। पुरानी कथाओं के अनुसार, भगवान अयप्पा भगवान शिव और विष्णु के मोहिनी अवतार के पुत्र माने जाते हैं। उन्हें हरिहर पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
अयप्पा एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिनमें शिव और विष्णु की विशेषताएं मिलती हैं। उनकी दो शक्तियों के कारण उन्हें शांति और युद्ध दोनों का प्रतीक माना जाता है।
कहा जाता है कि राक्षसी महिषी का वध करने के बाद, भगवान अयप्पा ने सब कुछ त्यागकर ब्रह्मचार्य का पालन करने का संकल्प लिया और जंगलों में कठोर तप किया।
भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने के कारण 10 से 50 साल की महिलाओं का मंदिर में आना वर्जित था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद महिलाओं को भी भगवान अयप्पा के दर्शन का अधिकार मिल गया है।
सबरीमाला मंदिर को दक्षिण का तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां आने वाले की धर्म, जाति और वर्ग का महत्व नहीं है। किसी भी वर्ग और जाति का व्यक्ति इसमें दीक्षा ले सकता है। भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए केवल आशीर्वाद ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक तपस्या भी आवश्यक है।
सबरीमाला मंदिर में मकर संक्रांति के अंत में एक रहस्यमयी ज्योति जलाई जाती है, जिसके दर्शन के लिए लाखों भक्त यहां एकत्र होते हैं। इस उत्सव को मकरविलक्कु के नाम से जाना जाता है। मकरविलक्कु उत्सव में पहाड़ी पर ज्योति जलाने के बाद भगवान अयप्पा के लिए जुलूस भी निकाला जाता है।