क्या सैन्य नर्सिंग सेवा ने 100 वर्षों में अद्वितीय सेवा प्रदान की है?

सारांश
Key Takeaways
- सैन्य नर्सिंग सेवा का शताब्दी वर्ष जीवन बचाने और विश्वास बनाने की कहानी है।
- यह सेवा आपातकालीन चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- महिलाओं का योगदान इस सेवा में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
- भविष्य में नवाचार और तकनीक का उपयोग बढ़ेगा।
- सैन्य नर्सिंग सेवा हमेशा सैन्य के साथ खड़ी रहेगी।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सैनिक चाहे रणभूमि में जख्मी हो, किसी आपदा से प्रभावित क्षेत्र में फंसा हो या शांति मिशन पर तैनात हो, सैन्य नर्सिंग सेवा हर कठिन घड़ी में सेना के लिए मौजूद रहती है। जवानों की सहायता के लिए सबसे पहले पहुंचने वाली करुणामयी और कुशल हाथों वाली सैन्य नर्सिंग सेवा अब अपने शताब्दी वर्ष में पहुंच चुकी है।
भारतीय सशस्त्र बलों की यह विशेष शाखा पिछले एक सदी से न केवल जीवन बचा रही है, बल्कि सैनिकों और उनके परिवारों के बीच विश्वास का दूसरा नाम बन चुकी है। इसी सेवा की शताब्दी वर्षगांठ सोमवार को नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में भव्य समारोह के साथ मनाई गई। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे और उन्होंने शताब्दी वैज्ञानिक सत्र का उद्घाटन किया।
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने इस मौके पर कहा कि सैन्य नर्सिंग सेवा (एमएनएस) की भूमिका युद्धों, शांति अभियानों, मानवीय राहत कार्यों और आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं में हमेशा से अनिवार्य रही है। उन्होंने पूर्व अतिरिक्त महानिदेशकों और दिग्गजों को सम्मानित करते हुए उनकी दशकों लंबी संवेदनशील और निस्वार्थ सेवा की सराहना की। समारोह का एक खास आकर्षण रहा सर्व-महिला पर्वतारोहण दल ‘द अरोहिणी’ का ध्वजवंदन।
इस टीम ने हाल ही में लद्दाख की यबत टोकपो घाटी में स्थित 6120 मीटर ऊंचे शिखर को फतह किया, जिस पर पहले कभी कोई नहीं चढ़ सका था। स्थानीय परंपरा के अनुसार इस शिखर को “माउंट लामो” नाम दिया गया, जो स्त्री शक्ति, धैर्य और लचीलापन का प्रतीक है। शताब्दी वैज्ञानिक कार्यक्रम का विषय था, ‘स्व-करुणा: देखभाल करने वालों की देखभाल।’ यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल “स्वस्थ नारी–सशक्त परिवार अभियान” से प्रेरित था।
इसमें विशेषज्ञों और विद्वानों ने आधुनिक तकनीक, नवाचार, एर्गोनॉमिक्स और करुणामय सेवा के माध्यम से सैन्य नर्सिंग प्रथाओं को और अधिक प्रभावी बनाने पर विचार-विमर्श किया। समारोह का एक और भावपूर्ण क्षण था एमएनएस का आधिकारिक गीत जारी होना। यह गीत सेवा की गौरवशाली परंपराओं, अनुशासन और पेशेवर कर्मियों को गर्व को संजोता है और अब हर औपचारिक अवसर पर एकजुटता का प्रतीक बनेगा।
वहीं, कार्यक्रम के समापन सत्र में वैज्ञानिक शोधपत्रों और पोस्टरों का मूल्यांकन किया गया, जिससे एमएनएस की अनुसंधान और नवाचार की निरंतर परंपरा को और बल मिला। इस अवसर पर डीजीएएफएमएस सर्जन वाइस एडमिरल अरति सारिन, थलसेना, नौसेना और वायुसेना के चिकित्सा महानिदेशक समेत कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह शताब्दी समारोह केवल अतीत की उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला संकल्प पर्व भी बना।