क्या साजिद रशीदी ने शनिवारवाड़ा नमाज मामले में नफरत की राजनीति का आरोप लगाया?

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क्या साजिद रशीदी ने शनिवारवाड़ा नमाज मामले में नफरत की राजनीति का आरोप लगाया?

सारांश

मौलाना साजिद रशीदी ने शनिवारवाड़ा में नमाज के विवाद पर राजनीति और नफरत की बातें उठाईं। क्या यह धार्मिक सहिष्णुता की कमी है? जानिए इस विवाद के पीछे की सच्चाई।

Key Takeaways

  • साजिद रशीदी ने धार्मिक विवादों पर सख्त रुख अपनाया।
  • शनिवारवाड़ा में नमाज पढ़ने की घटना पर राजनीति का आरोप।
  • गोमूत्र का उपयोग नफरत की राजनीति का प्रतीक।
  • हिंदू और मुसलमानों के अधिकार समान हैं।
  • राजनीतिक बयानबाजी से सामाजिक सौहार्द पर असर।

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने हाल ही में सामने आए धार्मिक विवादों पर सख्त रुख अपनाते हुए राजनीतिक दलों पर निशाना साधा है। पुणे के शनिवारवाड़ा में मुस्लिम महिलाओं द्वारा नमाज पढ़ने के वीडियो के वायरल होने के बाद हिंदू संगठनों द्वारा गोमूत्र से 'शुद्धिकरण' की घटना को रशीदी ने 'नफरत की राजनीति' बताया।

साजिद रशीदी ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे के हाजी अली दरगाह में हनुमान चालीसा पढ़ने के बयान और समाजवादी पार्टी नेता आजम खान के दीपक जलाने वाले विवादास्पद बयान पर भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

रशीदी ने कहा, "यह महल है, एएसआई के अधीन ऐतिहासिक स्थल है, यह कोई धार्मिक स्थान नहीं है। यह दिल्ली के इंडिया गेट या लाल किला जैसा है। अगर नमाज का समय हो जाए और कोई पढ़ ले, तो इसमें क्या समस्या है? लेकिन हिंदू संगठनों ने अगले दिन गोमूत्र से धो दिया, जिससे वह स्थान और नापाक हो गया।"

उन्होंने कहा, "गोमूत्र आपकी आस्था हो सकता है, लेकिन सभी के लिए नहीं। अगर हमारे शरीर पर गोमूत्र पड़ जाए, तो फिर नमाज नहीं उठेगी। उन मुस्लिम महिलाओं का क्या कसूर? वे घूमने आई थीं, नमाज का समय हो गया तो पढ़ लीं। यह सरकारी स्थान है, किसी की जागीर नहीं। हिंदुओं का हक है, तो मुसलमानों का भी। शुद्धिकरण करने वाले कौन होते हैं? उन महिलाओं पर एफआईआर गलत है, यह संविधान के खिलाफ है। एफआईआर उन पर होनी चाहिए, जिन्होंने गोमूत्र छिड़का। यह वोट बैंक का खेल है। ऐसे लोग हिंदू-मुस्लिम एकता नहीं चाहते। जनरल असीम मुनीर की बातें फैला रहे हैं।"

नितेश राणे के हाजी अली वाले बयान पर रशीदी ने कटाक्ष करते हुए कहा, "अगर घूमने की जगह पर नमाज पढ़ी, तो तुम दरगाह में हनुमान चालीसा क्यों पढ़ोगे? हमने तो तुम्हारे मंदिर में नमाज नहीं पढ़ी। नितेश राणे को हनुमान चालीसा याद भी नहीं होगी, मैं दावे से कहता हूं। यह नफरत फैलाने वाले हैं। भाजपा की जड़ें काट रहे हैं। मुसलमान भाजपा की ओर आना चाहते हैं, लेकिन ऐसे बयानों से भाग जाते हैं। लंबी पारी खेलनी है तो मुसलमानों को साथ लो, वरना नफरत की चिंगारियां बंद करो। इनके मुंह पर टेप लगाओ, सदस्यता रद्द करो।"

आजम खान के 'दीपक जलाने वाले कुछ भी जला सकते हैं' वाले बयान पर रशीदी ने कहा, "दीपक जलाना आस्था की बात है। आजम को इसी से जेल हुई थी। लगता है जेल की रोटी भा गई है और उन्हें बाहर की रोटी अच्छी नहीं लग रही। अगर नमाज पर अभद्र टिप्पणी हो तो कैसा लगेगा? इस हुकूमत में संभलकर बोलना चाहिए। ऐसी बयानबाजी से बचें।"

Point of View

यह आवश्यक है कि हम दोनों पक्षों को समझें। मौलाना साजिद रशीदी का बयान धार्मिक सहिष्णुता का एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। हमें ऐसे विवादों में संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए।
NationPress
22/10/2025

Frequently Asked Questions

शनिवारवाड़ा नमाज विवाद क्या है?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब पुणे के शनिवारवाड़ा में मुस्लिम महिलाओं द्वारा नमाज पढ़ने का वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद हिंदू संगठनों ने गोमूत्र से 'शुद्धिकरण' की कार्रवाई की।
साजिद रशीदी ने किस चीज पर निशाना साधा?
साजिद रशीदी ने राजनीतिक दलों पर नफरत की राजनीति का आरोप लगाया और इस घटना को धार्मिक सहिष्णुता की कमी बताया।
क्या गोमूत्र का उपयोग उचित है?
रशीदी के अनुसार, गोमूत्र किसी की व्यक्तिगत आस्था हो सकती है, लेकिन यह सभी के लिए नहीं है।
क्या राजनीतिक बयानबाजी से स्थिति और बिगड़ सकती है?
हां, राजनीतिक बयानबाजी से धार्मिक सौहार्द बिगड़ सकता है और इससे समाज में और नफरत फैलने का खतरा है।
क्या रशीदी के बयान का कोई असर हो सकता है?
रशीदी का बयान समाज में जागरूकता बढ़ा सकता है और लोगों को धार्मिक सहिष्णुता के महत्व पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है।