क्या एलजी को ‘आप’ विधायक संजीव झा का पत्र संवैधानिक मर्यादा और जवाबदेही पर सवाल उठाता है?

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क्या एलजी को ‘आप’ विधायक संजीव झा का पत्र संवैधानिक मर्यादा और जवाबदेही पर सवाल उठाता है?

सारांश

संजीव झा ने उपराज्यपाल के पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, जिससे संवैधानिक मर्यादाओं और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह पत्र राजनीतिक प्रासंगिकता की ओर इशारा करता है? जानिए इस विवाद की गहराई।

Key Takeaways

  • संजीव झा का पत्र उपराज्यपाल के पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया है।
  • संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
  • दिल्ली की जनता को जवाबदेही और निष्पक्ष प्रशासन की आवश्यकता है।
  • प्रदूषण संकट के समय एलजी की चुप्पी पर सवाल उठाए गए हैं।
  • भाजपा सरकार के कार्यकाल में कई संस्थाएं अभी तक गठित नहीं हुईं।

नई दिल्ली, 24 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक संजीव झा ने दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लिखे गए पत्र पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

संजीव झा ने एलजी को अपने जवाबी पत्र में स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल का पद केवल संवैधानिक है, न कि राजनीतिक बयानबाजी या प्रचार का मंच। यदि एलजी को राजनीति में रहना है, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देकर खुलकर राजनीति करनी चाहिए। दिल्ली की जनता को केवल बयान नहीं, बल्कि जवाबदेही और निष्पक्ष प्रशासन चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब दिल्ली के लोग गंभीर प्रदूषण संकट का सामना कर रहे थे, तब एलजी अहमदाबाद में क्रिकेट मैच देखने में व्यस्त थे। उन्होंने सवाल उठाया कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसे समय में व्यक्तिगत मनोरंजन में लिप्त रहना कैसे उचित है। झा ने याद दिलाया कि एलजी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि दिल्ली का 80 प्रतिशत प्रदूषण सरकार के नियंत्रण में है। अब जब भाजपा की सरकार है, तो उनकी बातें कहां गईं? क्या अब सरकार उनकी सुन नहीं रही है?

‘आप’ विधायक ने प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर क्लाउड सीडिंग जैसे उपायों पर करोड़ों रुपये खर्च करने को फिजूलखर्ची बताते हुए कहा कि इसके बावजूद नतीजे शून्य हैं, लेकिन एलजी इस पर मौन हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एलजी ने 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी को मिले जनादेश के बावजूद चुनी हुई सरकार के अधिकारों में लगातार हस्तक्षेप किया है।

संजीव झा ने मोहल्ला क्लिनिक बंद होने, बस मार्शलों और डीटीसी कर्मचारियों को हटाने, झुग्गियों के बड़े पैमाने पर ध्वस्तीकरण और जनहित से जुड़े मुद्दों पर एलजी की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जिन डीडीए पार्कों को उपलब्धि के रूप में गिनाया गया, वही आज निजीकरण और शुल्क के कारण आम जनता से दूर हो गए हैं।

झा ने आरोप लगाया कि एक ओर प्रधानमंत्री ‘पेड़-मां’ अभियान की बात करते हैं, वहीं वसंत विहार में 2200 पेड़ों की कटाई करवाई गई, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में बाद में माफी मांगनी पड़ी। इसे उन्होंने संवैधानिक पद पर रहते हुए गंभीर लापरवाही करार दिया। आबकारी नीति, बाढ़, जलभराव से हुई मौतों, नए अस्पतालों के निर्माण और विभिन्न आयोगों एवं बोर्डों के गठन पर भी संजीव झा ने एलजी पर दोहरे रवैये का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के 10 महीने बीत जाने के बावजूद कई संवैधानिक संस्थाएं गठित नहीं हुईं, लेकिन एलजी इस पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। संजीव झा ने कहा कि एलजी का पत्र यह दर्शाता है कि उनकी प्राथमिकता जनता की सेवा नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रासंगिकता और विरोधाभासी बयानबाजी है।

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि उपराज्यपाल राजनीति करना चाहते हैं, तो उन्हें संवैधानिक पद छोड़कर जनता के सामने आना चाहिए। संजीव झा ने चेतावनी दी कि एलजी की नाकामियों का विस्तृत विवरण वह अगले पत्र में सार्वजनिक करेंगे, ताकि दिल्ली की जनता को सच्चाई का पता चल सके।

Point of View

NationPress
24/12/2025

Frequently Asked Questions

संजीव झा ने एलजी के पत्र पर क्या प्रतिक्रिया दी?
संजीव झा ने उपराज्यपाल के पत्र को संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है।
क्या एलजी को राजनीति में सक्रिय रहना चाहिए?
संजीव झा का मानना है कि यदि उपराज्यपाल को सक्रिय राजनीति करनी है, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देकर ऐसा करना चाहिए।
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