क्या संविधान से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटने देंगे : शक्ति सिंह यादव?

सारांश
Key Takeaways
- संविधान का महत्व
- समाजवादी विचारधारा की रक्षा
- राजनीतिक बयानबाजी की गंभीरता
- धर्मनिरपेक्षता का संरक्षण
- सामाजिक संतुलन की आवश्यकता
पटना, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने की मांग के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने उनके बयान पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब तक समाजवादी विचारधारा के लोग मौजूद हैं, तब तक संविधान से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटने नहीं देंगे।
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में, दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में इन शब्दों की समीक्षा का सुझाव दिया। इस पर शक्ति सिंह यादव ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह कोई नई बात नहीं है। भाजपा संविधान में बदलाव की इच्छा रखती है, लेकिन जब तक समाजवादी विचारधारा के अनुयायी जिंदा हैं, उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती। हम किसी भी हालात में संविधान से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटने नहीं देंगे। हम इसके लिए अंतिम समय तक संघर्ष करेंगे। भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि लालू प्रसाद यादव अभी भी राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
इटावा की घटना पर शक्ति सिंह यादव ने कहा कि यह घटना कुछ लोगों के अहंकार का परिणाम है। हर नागरिक को ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार है। कोई भी व्यक्ति ज्ञान लेकर उसे दूसरों में बाँट सकता है, और ऐसा करने से कोई धर्म उसे रोक नहीं सकता। उन्होंने कथावाचकों के संदर्भ में कहा कि वे भूल जाएं कि कथा कहने का अधिकार केवल उनके पास है। समय बदल चुका है। शक्ति सिंह यादव ने एक समाज को टारगेट करते हुए कहा कि अगर बहुजन समाज के लोग इन्हें गलियों में नहीं घुसने देंगे, तो उन्हें होटल में बर्तन धोने की नौबत आ जाएगी।
उन्होंने यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के उस बयान का भी समर्थन किया जिसमें उन्होंने कहा कि अगर पीडीए समाज से इतना परहेज है, तो उन्हें यह घोषित करना चाहिए कि परंपरागत कथा कहने वाले वर्चस्ववादी पीडीए समाज द्वारा दिया गया चढ़ावा, चंदा, दान, दक्षिणा कभी स्वीकार नहीं करेंगे।