क्या सरकार अभी तक चुनाव सुधार की दिशा में नहीं सोच रही है?
सारांश
Key Takeaways
- चुनाव सुधार की आवश्यकता पर जोर।
- सरकार की निष्क्रियता पर विपक्ष के आरोप।
- चुनाव आयोग की जिम्मेदारियों पर सवाल।
- लोकतंत्र की स्थिरता के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता।
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश में चुनाव सुधार के मुद्दे पर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है। इसी संदर्भ में बुधवार को विपक्ष के सांसदों ने आरोप लगाया कि सरकार अभी चुनाव सुधार की दिशा में विचार नहीं कर रही है। उन्होंने चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए।
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि चुनाव सुधार का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले मानसून सत्र में इस पर विस्तृत चर्चा हुई थी। हमें उम्मीद थी कि सरकार चुनावी सुधारों के साथ सदन में एक ठोस योजना पेश करेगी, लेकिन सरकार अभी इस दिशा में विचार नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा, "नागरिकों के मतदान अधिकार की सुरक्षा, चुनाव आयोग का निष्पक्ष रूप से कार्य करना और ईमानदारी से डिजिटल मतदाता सूची तैयार करने के लिए सुधार आवश्यक हैं। सरकार से आज भी उम्मीद है कि वह चुनाव सुधार पर संवाद करे, लेकिन ये लोग अभी भी अतीत में अटके हुए हैं।"
मणिकम टैगोर ने कहा कि सरकार राहुल गांधी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पा रही है। सदन में राहुल गांधी के बाद कानून मंत्री ने उत्तर दिया, लेकिन उन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर अन्य बातों पर चर्चा की।
समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद आनंद भदौरिया ने कहा कि चुनाव सुधारों पर अखिलेश यादव ने आवश्यक बातें उठाई हैं। सरकार को इन्हें गम्भीरता से लेना चाहिए और चुनाव आयोग को आवश्यक सुधार लागू करने का निर्देश देना चाहिए। कुल मिलाकर चुनाव प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, "इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आम आदमी को संदेह होगा तो सवाल उठेंगे। राहुल गांधी भी चुनाव सुधार के मुद्दे पर लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने मंगलवार को भी लोकसभा में महत्वपूर्ण सवाल उठाए। सरकार के लिए ठोस पहल करने का यह सही समय है।"
सीपीएम के सांसद विकास भट्टाचार्य ने भी चुनाव सुधारों की बात की। उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग पूरी तरह से विफल रहा है। आयोग की जिम्मेदारी को उसने ठीक से नहीं निभाया है।"
उन्होंने कहा कि आयोग ने एसआईआर के आधार पर हंगामा खड़ा किया है। बीएलओ की ट्रेनिंग सही नहीं है। उन पर अधिक जिम्मेदारी है, जिसे वह पूरा करने में असमर्थ हैं। इसलिए कई स्थानों पर बीएलओ ने आत्महत्या की है। इसके बारे में चुनाव आयोग को सोचने की आवश्यकता है।