क्या काशी का शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर गंगा के वेग को रोक सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर काशी का दक्षिण द्वार है।
- यहां गंगा के वेग को रोकने की कहानी जुड़ी है।
- दर्शन से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं।
- सावन के महीने में भारी भीड़ रहती है।
- यहां आध्यात्मिक शांति मिलती है।
वाराणसी, 11 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। शुक्रवार से सावन का महीना शुरू हो चुका है, जो हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह मास बाबा विश्वनाथ का प्रिय समय है, जिससे काशी और अन्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी है। काशी में एक अद्भुत मंदिर है, जहां बाबा भक्तों के शूल को काटते हैं और केवल दर्शन करने से अनेक मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह मंदिर है, शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर।
यह मंदिर वाराणसी के रोहनिया विधानसभा क्षेत्र में गंगा के किनारे स्थित है, जो आस्था और पौराणिक महत्व का प्रमुख केंद्र है। यह कैंट स्टेशन से लगभग 15 किलोमीटर और अखरी बाईपास से चार किलोमीटर दूर माधोपुर गांव में स्थित है। चुनार रोड पर खनांव के निकट इसका भव्य द्वार श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। सामान्य दिनों में भी यहां भक्तों का आना-जाना बना रहता है, लेकिन सावन और शिवरात्रि के दौरान भारी भीड़ होती है। आज से सावन माह शुरू होने के साथ ही भक्तों का तांता लगने लगा है।
शिव पुराण और काशी खंड में इस मंदिर का विशेष उल्लेख है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माधव ऋषि ने गंगा के अवतरण से पहले इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी। जब गंगा अपने रौद्र रूप में काशी में प्रवेश करने लगीं, तो भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनके वेग को रोक दिया। इससे गंगा को पीड़ा हुई और उन्होंने क्षमा मांगी।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने गंगा से दो वचन लिए थे। पहला, गंगा काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी, और दूसरा, काशी में स्नान करने वाले भक्तों को जलीय जीवों से कोई हानि नहीं होगी। गंगा के वचन देने के बाद शिव ने अपना त्रिशूल हटाया। इसीलिए यह मंदिर काशी का दक्षिण द्वार कहलाता है।
मंदिर में शूलटंकेश्वर महादेव का स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। प्रांगण में श्रीराम भक्त हनुमान, माता पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय और नंदी की मूर्तियां भी विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजन करने से भक्तों के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं, जैसे गंगा के शूल (कष्ट) समाप्त हुए थे।
उत्तर प्रदेश सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध है।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर का नाम पहले ऋषि माधव के नाम पर माधवेश्वर महादेव था। उन्होंने भगवान शिव की आराधना के लिए इस लिंग की स्थापना की थी। पुजारी का कहना है कि शूलटंकेश्वर महादेव के दर्शन से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं।
यह मंदिर काशी के बारह द्वारों में से एक है, जो दक्षिण दिशा की रक्षा करता है। सावन के महीने में यहां जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के लिए भक्तों की भीड़ रहती है। मंदिर का शांत वातावरण और गंगा का निकटवर्ती प्रवाह इसे ध्यान और भक्ति के लिए आदर्श बनाता है।