क्या आप जानते हैं सुरों के शहंशाह एसडी बर्मन का दिलचस्प किस्सा?

सारांश
Key Takeaways
- एसडी बर्मन का संगीत भारतीय सिनेमा का अभिन्न हिस्सा रहा है।
- उनकी नाराजगी और परफेक्शनिज़्म संगीत प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय है।
- उन्होंने 100+ फिल्मों के लिए संगीत दिया और कई सम्मान प्राप्त किए।
- उनका योगदान आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करता है।
- हर साल एसडी बर्मन मेमोरियल अवॉर्ड देकर उनकी याद में श्रद्धांजलि दी जाती है।
मुंबई, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में कई अद्वितीय नाम हैं, लेकिन कुछ संगीतकार ऐसे हैं जिनका जादू कभी खत्म नहीं होता। सचिन देव बर्मन, जिन्हें एसडी बर्मन के नाम से जाना जाता है, ऐसे ही एक अलौकिक संगीतकार थे। उनके गाने न केवल सुने जाते थे, बल्कि उन्हें दिल से महसूस किया जाता था। वे संगीत को आत्मा की आवाज मानते थे। यही कारण था कि वे अपने संगीत में किसी प्रकार का समझौता नहीं करते थे। एक बार उन्होंने एक गाने को फिर से रिकॉर्ड करने की जिद की और जब लता मंगेशकर ने मना किया, तो वे पांच वर्षों तक उनसे नाराज रहे। यह घटना उनके परफेक्शनिस्ट स्वभाव का एक जीवंत उदाहरण बन गई।
एसडी बर्मन का जन्म 1 अक्टूबर 1906 को हुआ था। उनका संबंध त्रिपुरा के शाही परिवार से था। बचपन से ही उन्हें लोक संगीत में गहरी रुचि थी। वे गांवों में घूम-घूमकर लोक गीतों को सुनते और उनसे प्रेरणा लेते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता विश्वविद्यालय से की और वहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई। 1932 में वह कोलकाता रेडियो स्टेशन से बतौर गायक जुड़े और जल्द ही बंगाली फिल्मों के लिए संगीत देने लगे।
1940 के दशक में एसडी बर्मन मुंबई आए और यहीं से हिंदी सिनेमा में उनका सफर शुरू हुआ। 1946 की फिल्म 'शिकारी' से उन्हें पहला बड़ा मौका मिला। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गुरुदत्त, देवानंद और बिमल रॉय जैसे निर्देशकों की फिल्मों में उनका संगीत एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। 'प्यासा,' 'गाइड,' 'बंदिनी,' 'अभिमान,' 'चलती का नाम गाड़ी,' 'शबनम,' 'तेरे मेरे सपने,' 'ज्वेल थीफ,' 'कागज के फूल,' 'सुजाता,' और 'प्रेम पुजारी' जैसी फिल्मों में उन्होंने जो धुनें बनाई, वे आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। उनकी खासियत यह थी कि वे अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, और पश्चिमी धुनों का अनोखा मेल तैयार करते थे।
एसडी बर्मन केवल एक उत्कृष्ट संगीतकार नहीं थे, बल्कि वे बेहद जिद्दी और परफेक्शन के दीवाने भी थे। उनके और लता मंगेशकर के बीच एक दिलचस्प किस्सा हुआ। 1958 में आई फिल्म 'सितारों से आगे' के लिए लता जी ने एक गाना 'पग ठुमक चलत' रिकॉर्ड किया। बर्मन साहब ने रिकॉर्डिंग के बाद इसे 'ओके' भी कर दिया था, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने लता मंगेशकर को फोन करके कहा कि वे इस गाने को फिर से रिकॉर्ड करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें कुछ और सुधार हो सकता है। लता मंगेशकर उस समय किसी सफर पर जा रही थीं, इसलिए उन्होंने मना कर दिया।
बर्मन साहब को उनका मना करना बुरा लग गया और वे इतने नाराज हुए कि अगले पांच वर्षों तक उन्होंने लता मंगेशकर के साथ कोई काम नहीं किया। यह नाराजगी तब खत्म हुई जब उनके बेटे, राहुल देव बर्मन (पंचम दा), ने अपनी पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1962) में लता मंगेशकर से गाना गवाने की जिद की। पंचम दा की बात टालना मुश्किल था और इस तरह बर्मन साहब ने लता के साथ सुलह कर ली। इसके बाद दोनों ने कई यादगार गानों पर साथ काम किया।
अपने लंबे करियर में उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत दिया और लगभग हर बड़े गायक-गायिका के साथ काम किया। उन्हें कई सम्मान भी मिले। भारत सरकार ने उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए कई मंचों पर सम्मानित किया। 2007 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। त्रिपुरा सरकार हर साल एसडी बर्मन मेमोरियल अवॉर्ड भी देती है। 31 अक्टूबर 1975 को उनका निधन हो गया।