क्या सेबी म्यूचुअल फंड नियमों में बदलाव से निवेशकों को लाभ पहुंचाएगा?

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क्या सेबी म्यूचुअल फंड नियमों में बदलाव से निवेशकों को लाभ पहुंचाएगा?

सारांश

सेबी ने म्यूचुअल फंड्स में बदलाव का प्रस्ताव रखा है, जिससे ब्रोकरेज लागत में कमी और पारदर्शिता बढ़ाने का लक्ष्य है। क्या ये कदम निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित होंगे?

Key Takeaways

  • सेबी ने म्यूचुअल फंड्स में नियमों में बदलाव का प्रस्ताव रखा है।
  • ब्रोकरेज लागत को कम करने का लक्ष्य है।
  • फीस डिस्क्लोजर को और अधिक स्पष्ट बनाया जाएगा।
  • निवेशकों की लागत कम करने के लिए एनएफओ खर्च एएमसी द्वारा वहन किया जाएगा।
  • निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

मुंबई, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भारत में प्रबंधित म्यूचुअल फंड्स में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा है। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रोकरेज लागत को कम करना, फीस डिस्क्लोजर को स्पष्ट करना और निवेशकों से शुल्क लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।

1996 के म्यूचुअल फंड रेगुलेशंस की समीक्षा करते हुए, सेबी ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) के लिए लागत संरचनाओं को सख्त करने का सुझाव दिया है, ताकि अधिक लाभ सीधे निवेशकों तक पहुँच सके।

एक प्रमुख प्रस्ताव के तहत, ब्रोकरेज और लेनदेन लागत में भारी कटौती की जाएगी, जिससे म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश करना सस्ता हो जाएगा।

सेबी ने कैश मार्केट में व्यापार के लिए ब्रोकरेज की सीमा को वर्तमान 12 आधार अंकों से घटाकर केवल 2 आधार अंकों (बीपीएस) पर रखने का सुझाव दिया है। डेरिवेटिव्स के लिए, यह सीमा 5 आधार अंकों से घटाकर केवल 1 आधार अंक कर दी जाएगी।

एक और महत्वपूर्ण कदम के तहत, सेबी ने अतिरिक्त 5 आधार अंकों के खर्च को हटाने का प्रस्ताव दिया है, जिसे एएमसी को 2018 से अपने कुल एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) पर वसूलने की अनुमति थी।

इस बदलाव को संतुलित करने के लिए, सेबी ने ओपन-एंडेड सक्रिय स्कीमों के लिए बेस टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) स्लैब में 5 बीपीएस की वृद्धि का सुझाव दिया है।

एक्सपेंस डिस्क्लोजर को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए, सेबी ने यह सुझाव दिया है कि टैक्स और सरकारी शुल्क जैसे सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी), गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) और स्टांप शुल्क को म्यूचुअल फंड एक्सपेंस रेश्यो में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

इसके बजाय, इन्हें अलग से दिखाया जाएगा और सीधे निवेशकों से वसूला जाएगा। इसका मतलब है कि अब टीईआर केवल वही दर्शाएगा जो फंड मैनेजर निवेशकों के एसेट मैनेजमेंट के लिए लेते हैं, जबकि टैक्स को एक अलग लागत के रूप में दिखाया जाएगा।

सेबी ने एक वैकल्पिक प्रदर्शन-आधारित टीईआर फ्रेमवर्क शुरू करने का भी प्रस्ताव दिया है, जिससे एएमसी अपने फंड के प्रदर्शन के आधार पर अधिक या कम शुल्क ले सकेंगे।

इसके अतिरिक्त, सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि न्यू फंड ऑफर (एनएफओ) से संबंधित सभी खर्च (यूनिटों के आवंटन तक) एएमसी कंपनी द्वारा वहन किए जाएं, न कि स्कीम द्वारा, जिससे निवेशकों के लिए लागत कम होगी।

इस कदम का उद्देश्य अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये सुधार लागू होते हैं, तो ये भारत के लाखों निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड निवेश को अधिक पारदर्शी, लागत प्रभावी और उचित बना सकते हैं।

Point of View

यह महत्वपूर्ण है कि हम इन प्रस्तावित परिवर्तनों पर गहराई से विचार करें। यह कदम न केवल निवेशकों के हितों की रक्षा करेगा, बल्कि म्यूचुअल फंड उद्योग में प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा देगा।
NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

सेबी के प्रस्तावित बदलावों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
सेबी के प्रस्तावित बदलावों का मुख्य उद्देश्य ब्रोकरेज लागत को कम करना, फीस डिस्क्लोजर को स्पष्ट करना और निवेशकों से शुल्क लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।
क्या म्यूचुअल फंड में निवेश करना सस्ता होगा?
हां, सेबी के प्रस्तावित नियमों से ब्रोकरेज और लेनदेन लागत में कमी आएगी, जिससे म्यूचुअल फंड में निवेश करना सस्ता होगा।
क्या निवेशकों के लिए यह बदलाव फायदेमंद होंगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि ये सुधार भारत के लाखों निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड निवेश को अधिक पारदर्शी और उचित बना सकते हैं।