क्या 'केलवा के पात' से 'पद्म विभूषण' तक शारदा सिन्हा की यात्रा अद्वितीय है?

सारांश
Key Takeaways
- शारदा सिन्हा की आवाज ने छठ पूजा को नई पहचान दी।
- उनका संघर्ष और सफलता प्रेरणादायक है।
- लोकसंगीत के प्रति उनका योगदान अमूल्य है।
- उन्होंने बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई।
- उनके गीतों ने छठ महापर्व को अमर बना दिया है।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब छठ पूजा की सुबह घाट पर सूर्य की लालिमा बिखरती है, तो कानों में ‘केलवा के पात पर उगलन सूरजमल’ की मधुर धुन गूंजती है। इसी तरह, जब शाम का समय होता है, तो ‘सुनअ छठी माई’ गीत श्रद्धालुओं के मन में भक्ति का संचार करता है। ये गीत केवल एक धुन नहीं, बल्कि छठ महापर्व की आत्मा हैं, और इस आत्मा को अपनी मधुर आवाज देने वाली अद्वितीय लोकगायिका शारदा सिन्हा हैं।
शारदा सिन्हा का नाम अब छठ पूजा का पर्याय बन चुका है। उनके बिना यह पर्व अधूरा सा प्रतीत होता है। उनकी आवाज न केवल बिहार-झारखंड और उत्तर प्रदेश के गांवों तक गूंजती है, बल्कि अमेरिका जैसे देशों में बसे प्रवासी भारतीयों के छठ उत्सव को भी जीवंत बनाती है।
साल 1952 में 1 अक्टूबर को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा ने बचपन से ही संगीत के प्रति गहरी रुचि दिखाई। साधारण ग्रामीण परिवेश से निकलकर उन्होंने कठिन मेहनत और जुनून से वह मुकाम पाया, जहां से उन्होंने लोकसंगीत को नई ऊंचाई दी। उनके सफर की असली शुरुआत बेगूसराय जिले के सिहमा गांव से हुई, जहां उनके ससुराल वाले रहते थे। यहाँ उन्होंने मैथिली लोकगीतों के प्रति गहरी रुचि विकसित की, जो उनकी पहचान का आधार बनी।
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली, मगही और हिंदी गीतों को अपनी आवाज में ढाला। उनके प्रतिभा केवल लोकगीतों तक सीमित नहीं रही। बॉलीवुड में भी उन्होंने अपने सुरों का जादू बिखेरा। सलमान खान की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ का गीत ‘कहे तो से सजना’ आज भी उनकी पहचान बना हुआ है। इसके अलावा, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’ और ‘चारफुटिया छोकरे’ जैसी फिल्मों में उनके गीतों को जबरदस्त सराहना मिली।
साल 2016 में शारदा सिन्हा ने ‘सुपवा ना मिले माई’ और ‘पहिले पहिल छठी मैया’ जैसे गीत जारी कर छठ महापर्व को नई ताजगी प्रदान की। इन गीतों ने पारंपरिक भावनाओं को पुनर्जीवित किया और पूरे देश में छठ की भक्ति-भावना को फैलाया।
अपने अमूल्य योगदान के लिए शारदा सिन्हा को 1991 में पद्मश्री और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही, 2025 में उन्हें मरणोपरांत देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण देने की घोषणा की गई। यह सम्मान न केवल उनके गायक व्यक्तित्व की स्वीकृति है, बल्कि भारतीय संस्कृति और लोकधरोहर के संरक्षण में उनकी भूमिका का प्रतीक भी है।
हालांकि शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज हर छठ घाट पर सुनाई देती है। हर बार जब सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, तो यह एहसास होता है कि लोकगायिका शारदा सिन्हा ने अपने गीतों से छठ महापर्व को अमर बना दिया है।