क्या शिवाजी महाराज के किलों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलना भारत के लिए गर्व की बात है?: सुसीबेन शाह

सारांश
Key Takeaways
- शिवाजी महाराज के किलों की यूनेस्को में पहचान राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है।
- महाराष्ट्र की संस्कृति और भाषा को बढ़ावा मिलता है।
- महायुति सरकार ने हमेशा मराठी अस्मिता के लिए लड़ाई लड़ी है।
- सभी राजनीतिक बयानों में तथ्यों की आवश्यकता है।
- धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का निर्णय उचित है।
मुंबई, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। छत्रपति शिवाजी महाराज के 12 किलों को यूनेस्को की सूची में शामिल किए जाने पर व्यापक प्रशंसा हो रही है। शनिवार को शिवसेना नेता सुसीबेन शाह ने इसे एक गर्व की बात बताया।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "शिवाजी महाराज के किलों को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। यह महाराष्ट्र और देश के लिए गौरव का विषय है। महायुति सरकार ने हमेशा मराठी अस्मिता, भाषा और संस्कृति के लिए लड़ाई लड़ी है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में ‘मराठी गीत’ हर सरकारी कार्यक्रम में बजाया गया है। इसके साथ ही मराठी को क्लासिकल भाषा का दर्जा दिलाना भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।"
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत के हालिया बयान पर सुसीबेन शाह ने पलटवार किया। उन्होंने कहा, "संजय राउत अक्सर बिना तथ्यों के आरोप लगाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा पर एकनाथ शिंदे ने दिल्ली जाकर अमित शाह की पूजा की, जबकि उस दिन अमित शाह दिल्ली में थे ही नहीं। ऐसे झूठे आरोप साबित करते हैं कि उन्हें इलाज की जरूरत है।"
अहमदाबाद प्लेन क्रैश पर शिवसेना नेता ने कहा, "रिपोर्ट में सामने आया है कि फ्यूल के दोनों स्विच बंद थे, यह कैसे हुआ, तकनीकी गड़बड़ी थी या सॉफ्टवेयर फेलियर, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यह एक दुखद घटना है, और इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए।"
जन सुरक्षा कानून पर विपक्ष के आरोप को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, "यह कानून आम नागरिकों के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन संगठनों के लिए है जो देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। चंद्रपुर, गडचिरोली जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास के रास्ते में रुकावट डालने वालों पर कार्रवाई आवश्यक है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की समिति के जरिए फैसला होता है, इसलिए यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है।"
धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने के फैसले का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा, "बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की नींद, सभी पर असर होता है, जब दिन में बार-बार लाउडस्पीकर बजते हैं। सरकार ने सही निर्णय लिया है कि रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकर नहीं बजेंगे। धार्मिक पर्वों पर सरकार से उम्मीद है कि समय सीमा में कुछ लचीलापन होगा, लेकिन आम नागरिकों की सहूलियत भी आवश्यक है।"