क्या है श्री लक्ष्मी गणपति वारी मंदिर: चट्टान पर बनी भगवान गणेश की प्रतिमा?

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क्या है श्री लक्ष्मी गणपति वारी मंदिर: चट्टान पर बनी भगवान गणेश की प्रतिमा?

सारांश

भगवान गणेश का अद्भुत मंदिर, जहां भक्त अपनी मनोकामनाएँ कान में फुसफुसाते हैं। जानें इस प्राचीन मंदिर की विशेषताएं और मान्यताएं।

Key Takeaways

  • भगवान गणेश की अद्भुत चट्टान स्वरूप प्रतिमा यहाँ विराजित है।
  • मंदिर की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई मानी जाती है।
  • यह प्रतिमा 1200 वर्ष पुरानी है और इसका आकार बढ़ता रहता है।
  • भक्त अपनी मनोकामनाएँ भगवान गणेश के कान में कहते हैं।
  • संबंधित मंदिरों का दर्शन अनिवार्य माना जाता है।

नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान गणेश के देशभर में अनेक प्राचीन और सिद्ध मंदिर मौजूद हैं। विघ्नों के नाशक माने जाने के कारण, भगवान गणेश देवताओं में सबसे अधिक पूजनीय माने जाते हैं।

आंध्र प्रदेश के बिक्कावोलु गांव में भगवान विनायक का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ पूजा करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ विराजित भगवान गणेश भक्तों के पापों का नाश करते हैं।

पूर्वी गोदावरी के पास बिक्कावोलु गांव में श्री लक्ष्मी गणपति वारी देवस्थान है, जहाँ भगवान विनायक की अद्भुत चट्टान स्वरूप प्रतिमा स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रतिमा स्वयं मंदिर के गर्भगृह में प्रकट हुई थी, जिसके कारण भक्तों की श्रद्धा इस मंदिर पर अत्यधिक है। भगवान विनायक की प्रतिमा की ऊँचाई लगभग 7 फीट है और यह चट्टान स्वरूप है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक विशाल चट्टान पर स्वयं भगवान गणेश ने अपनी आकृति उकेर दी हो।

शृंगार के बाद भगवान विनायक के दर्शन अद्भुत होते हैं। भक्त अपनी किसी विशेष मनोकामना को पूज्यनीय भगवान गणेश के कानों में कहते हैं और भेंट स्वरूप प्रसाद चढ़ाते हैं। जब मन्नत पूरी हो जाती है, तो भक्त को मंदिर में पुनः आकर विशेष अनुष्ठान कराना होता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह प्रतिमा लगभग 1200 वर्ष पुरानी है और इसका आकार समय के साथ बढ़ता रहता है।

इस मंदिर का निर्माण 840 ई. में चालुक्यों द्वारा कराया गया था। मंदिर की दीवारों और खंभों पर चालुक्य काल के शिलालेख और आकृतियाँ उकेरी गई हैं। कहा जाता है कि जब मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था, तब यह प्रतिमा जमीन के नीचे थी। किंवदंती के अनुसार, गांव के एक भक्त ने सपने में भगवान गणेश को दर्शन दिए थे और अपने स्थान का संकेत दिया था, जिसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया।

भक्त ने यह बात गांव में बताई और सभी गांव वालों ने मिलकर प्रतिमा को निकालकर मंदिर का निर्माण किया। उस समय यह भी कहा गया कि भगवान गणेश की प्रतिमा को जमीन से निकालने के बाद उसका आकार थोड़ा बढ़ गया है। तब से यह धारणा बन गई है कि प्रतिमा अपना आकार बढ़ाती है।

श्री लक्ष्मी गणपति वारी के समीप ही भगवान शिव के नंदीश्वर और भूलिंगेश्वर मंदिर भी स्थापित हैं। माना जाता है कि भगवान विनायक के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं जब भक्त नंदीश्वर और भूलिंगेश्वर मंदिर के भी दर्शन कर लें।

Point of View

बल्कि यहाँ की इतिहासिक पृष्ठभूमि भी इसे विशेष बनाती है। भक्तों की आस्था और यहां की मान्यताएं इसे एक अद्वितीय स्थान बनाती हैं।
NationPress
31/10/2025

Frequently Asked Questions

श्री लक्ष्मी गणपति वारी मंदिर कहाँ स्थित है?
यह मंदिर आंध्र प्रदेश के बिक्कावोलु गांव में स्थित है।
भगवान गणेश की प्रतिमा कब स्थापित की गई थी?
यह प्रतिमा लगभग 1200 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
क्या भक्त यहाँ अपनी मनोकामनाएँ कह सकते हैं?
हाँ, भक्त अपनी मनोकामनाएँ भगवान गणेश के कान में फुसफुसाते हैं।
मंदिर का निर्माण किसने कराया?
इस मंदिर का निर्माण 840 ई. में चालुक्यों ने कराया था।
मंदिर के आसपास और कौन से मंदिर हैं?
मंदिर के पास भगवान शिव के नंदीश्वर और भूलिंगेश्वर मंदिर भी हैं।