क्या सपा ने दलित वोट बैंक पर ‘वोट चोरी’ का नया सियासी दांव खेला है?

सारांश
Key Takeaways
- सपा की 'वोट चोरी' रणनीति दलितों को एकजुट करने का प्रयास है।
- बसपा की कमजोर पकड़ का फायदा उठाने का उद्देश्य।
- चुनाव में भाजपा को चुनौती देने की योजना।
- दलितों के अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित।
- 2027 के चुनावों में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।
लखनऊ, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। यही कारण है कि हर चुनाव में इस वर्ग को साधने की कोशिशें तेज हो जाती हैं। अब समाजवादी पार्टी (सपा) ने दलितों को अपने पक्ष में लाने के लिए एक नया दांव खेला है, और वह है 'वोट चोरी' का।
अखिलेश यादव के निर्देशन में पार्टी ने अपने फ्रंटल संगठन आंबेडकर वाहिनी को पूरी तरह सक्रिय कर दिया है। इसका मुख्य उद्देश्य बसपा की कमजोर पकड़ का फायदा उठाकर दलितों में सियासी सेंध लगाना है। राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती का कहना है कि हम गाँव-गाँव चौपाल कर रहे हैं, लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बता रहे हैं और उन्हें यह समझा रहे हैं कि चुनावों में उनके वोट किस तरह से चोरी हो जाते हैं। इस बार बूथ-बूथ पर पहरा देना है, ताकि दलितों की आवाज़ दब न सके।
भारती ने गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में रात बिताकर अभियान चलाने का उदाहरण देते हुए कहा कि हम दलितों के घर-घर जा रहे हैं। संविधान और आरक्षण की सुरक्षा का संदेश देंगे और वोट चोरी को रोकेंगे। सपा का यह अभियान सीधे तौर पर भाजपा को निशाना बनाता है। पार्टी के नेताओं का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल चुनावी तंत्र का दुरुपयोग कर दलितों की राजनीतिक ताकत को कमजोर कर रहा है।
दूसरी ओर, बसपा की गिरती साख ने सपा को एक बड़ा अवसर प्रदान किया है। यही कारण है कि सपा पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के समीकरण को और मजबूत करने के लिए ‘वोट चोरी’ को चुनावी हथियार बना रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह रणनीति भाजपा और बसपा दोनों के लिए समस्याएँ पैदा कर सकती है।
वरिष्ठ विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि ‘संविधान बचाओ’ और ‘आरक्षण बचाओ’ के बाद ‘वोट बचाओ’ दलितों के बीच सबसे बड़ा नारा बन रहा है। सपा इसे बढ़ावा देकर दलित राजनीति का नया केंद्र बनने का प्रयास कर रही है। मायावती की कमजोर पकड़ से बने शून्य को भरने के लिए यह सबसे सही मौका है।
दरअसल, कांग्रेस ने बिहार चुनाव में वोट चोरी का मुद्दा उठाया था। राहुल गांधी ने इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और विपक्षी दलों को एकजुट किया। अखिलेश यादव ने उसी एजेंडे को यूपी में लागू किया है। अब सपा का पूरा ध्यान बूथ स्तर पर दलितों को संगठित कर भाजपा के खिलाफ एकजुट करने पर है। स्पष्ट है कि दलितों के बीच 'वोट चोरी' नया नारा बन चुका है। चुनावी लड़ाई में यह नारा कितना प्रभाव डालेगा, इसका फैसला 2027 के चुनाव से होगा।