क्या सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों की स्थिति पर ध्यान दिया?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग कैडेटों की स्थिति पर संज्ञान लिया है।
- 500 से अधिक कैडेट्स को प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता के कारण बाहर किया गया।
- कैडेट्स के लिए बीमा पॉलिसी का सवाल उठाया गया।
- सरकार को दिव्यांग कैडेट्स के लिए नौकरी देने पर विचार करने को कहा गया।
- आगामी सुनवाई 4 सितंबर को होगी।
नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता के कारण बाहर किए गए कैडेटों की स्थिति पर गंभीरता से विचार किया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार के साथ-साथ वायुसेना, थल सेना और नौसेना के प्रमुखों को नोटिस जारी किया है। नियमों के अनुसार, कमीशन से पहले दिव्यांग होने वाले कैडेट्स पूर्व सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं के हकदार नहीं होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर लिया है। रिपोर्ट में कहा गया था कि 1985 से अब तक लगभग 500 अधिकारी कैडेटों को प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न दिव्यांगताओं के कारण मेडिकल आधार पर संस्थानों से निकाला गया है। ये कैडेट कभी एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) और आईएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) जैसे प्रतिष्ठित सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षण ले रहे थे।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस नागरत्ना ने यह सवाल उठाया कि क्या ट्रेनी कैडेट्स के लिए कोई बीमा पॉलिसी उपलब्ध है? उनका कहना था कि हम चाहते हैं कि बहादुर लोग सेना में शामिल हों, लेकिन अगर उन्हें आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा, तो यह उनके मनोबल को प्रभावित करेगा।
इसके साथ ही, बेंच ने सरकार से यह भी पूछा कि क्या दिव्यांग हुए कैडेट्स को सेना में किसी अन्य पद पर नौकरी देने की संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को होगी।
नियमों के अनुसार, दिव्यांग कैडेट्स पूर्व सैनिक (ईएसएम) का दर्जा पाने के हकदार नहीं होते हैं, जिससे वे पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत मिलने वाली सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए भी पात्र नहीं हो पाते। यह इसलिए है क्योंकि वे अधिकारी के रूप में कमीशन प्राप्त करने से पहले प्रशिक्षण के दौरान ही दिव्यांग हो चुके थे।