क्या 'अवसर तेरे लिए खड़ा है...' राष्ट्रकवि की एक पंक्ति ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा बदल दी?

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क्या 'अवसर तेरे लिए खड़ा है...' राष्ट्रकवि की एक पंक्ति ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा बदल दी?

सारांश

मैथिलीशरण गुप्त की पंक्ति 'अवसर तेरे लिए खड़ा है' ने स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा भरी। जानिए उनकी जीवन यात्रा और साहित्यिक योगदान के बारे में।

Key Takeaways

  • मैथिलीशरण गुप्त ने भारतीय संस्कृति को साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।
  • भारत-भारती ने स्वतंत्रता आंदोलन में नई चेतना भरी।
  • गुप्त के काव्य में नारी पात्रों को महाकाव्यिक गौरव दिया गया।
  • उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि मिली।
  • गुप्त का साहित्य आज भी महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, 11 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है…’ यह पंक्ति, जो एक दुबले-पतले और शांत स्वभाव के कवि की लेखनी से निकली, निश्चित रूप से उन्हें नहीं पता था कि यह आने वाले दशकों में भारत की राष्ट्रीय चेतना का संकल्प-मंत्र बन जाएगी।

ब्रजभाषा की काव्य परंपरा में एक नया और सरल स्वर उभर रहा था। यह स्वर था मैथिलीशरण गुप्त का, जिन्हें महात्मा गांधी ने 'राष्ट्रकवि' की उपाधि से नवाजा।

आज हम उस महान साहित्यकार की गाथा पर विचार करते हैं, जिनका निधन 12 दिसंबर 1964 को हुआ, लेकिन जिनकी विरासत आज भी आधुनिक भारतीय चेतना को आकार दे रही है।

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव में हुआ। उनके परिवार का माहौल धार्मिक और साहित्यिक था। उनके पिता रामचरण गुप्त एक परम वैष्णव थे, जिनके संस्कारों ने गुप्त के काव्य में मर्यादा, भक्ति और नैतिकता का बीजारोपण किया।

कम ही लोग जानते हैं कि गुप्त को औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, बल्कि उन्होंने घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी और यहां तक कि बंगला साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। यह ज्ञान उन्हें भारतीय परंपरा और बंगाली नवजागरण से जोड़ने में सहायक रहा।

गुप्त के कवि-जीवन को निर्णायक मोड़ देने वाले व्यक्ति थे आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, जिन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक के रूप में एक साहित्यिक क्रांति का नेतृत्व किया। द्विवेदी का प्रोत्साहन गुप्त को ब्रजभाषा के मोह से मुक्त कर, खड़ी बोली में राष्ट्रीय चेतना को व्यक्त करने वाला कवि बना दिया। यह गुरु-शिष्य परंपरा द्विवेदी युग की साहित्यिक क्रांति की नींव थी।

गुप्त ने 1910 में अपने पहले काव्य संग्रह 'रंग में भंग' और फिर 'जयद्रथ वध' के माध्यम से अपनी यात्रा शुरू की। उनका उद्देश्य पौराणिक आख्यानों के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को जगाना था।

यदि गुप्त ने खड़ी बोली को केवल एक साहित्यिक भाषा बनाया होता, तो वे युग-प्रवर्तक होते, लेकिन उनकी कालजयी कृति 'भारत-भारती' उन्हें 'राष्ट्रकवि' बनाती है।

यह कृति 1912-1913 में प्रकाशित हुई और इसने पराधीनता के समय में भारतीयों के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित किया। 'भारत-भारती' केवल एक कविता संग्रह नहीं था, यह भारतीय संस्कृति का एक सांस्कृतिक घोषणापत्र था।

इसमें भारत के गौरवपूर्ण इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीय स्वाभिमान को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया था। इसका केंद्रीय संदेश था कि ऐतिहासिक गौरव को याद करो, वर्तमान की दुर्दशा से जागो और अपने कर्तव्य को पहचानो।

इस रचना की गूंज महात्मा गांधी के कानों तक पहुंची। गांधी जी मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय चेतना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि दी। यह उपाधि गुप्त की काव्य प्रतिभा से ज्यादा, उनकी रचनाओं की वैचारिक शक्ति को दर्शाती है।

ब्रिटिश सरकार के लिए यह साहित्य एक वैचारिक खतरा बन गया। 'भारत-भारती' ने हजारों लोगों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया और भारतीयों की मान-मर्यादा को पुनर्स्थापित किया।

मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक शिखर को उनके दो महान कार्यों से समझा जा सकता है: महाकाव्य 'साकेत' (1931) और खंडकाव्य 'यशोधरा' (1932)।

इन कृतियों में, उन्होंने पारंपरिक कथाओं को आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया और दो उपेक्षित नारी पात्रों को महाकाव्यिक गौरव प्रदान किया।

'साकेत' की रचना का मुख्य उद्देश्य रामकथा में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव को दूर करना था। गुप्त ने उर्मिला को त्याग, पतिपरायणता और विनम्रता के गुणों से मंडित करके करुणा और सहनशीलता का प्रतीक बनाया।

इसी कड़ी में, 'यशोधरा' खंडकाव्य गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के त्याग और पीड़ा पर केंद्रित है। इसमें नारी जीवन की त्रासदी को उजागर करने वाली उनकी कालजयी पंक्ति है, 'अबला जीवन हाय, तेरी यही कहानी। आंचल में दूध और आंखों में पानी।'

गुप्त का साहित्यिक दृष्टिकोण 'गृहस्थ कवि' का था। वे नारी-मुक्ति के पक्षधर थे, परंतु उनकी मुक्ति को मर्यादा, त्याग और राष्ट्रीय कर्तव्य के आदर्शों के भीतर ही सीमित रखा।

गुप्त का काव्य-शिल्प परंपरा और प्रयोगधर्मिता का अद्भुत संगम था। उन्होंने अपनी सरल और नैतिकता-प्रधान शैली के माध्यम से खड़ी बोली को आम पाठक तक पहुंचा दिया।

उनके विपुल सृजन में लगभग 40 खंडकाव्य शामिल हैं, जिनमें 'पंचवटी' (1925), 'द्वापर' (1936), और स्वतंत्रता के बाद लिखा गया 'जय भारत' (1952) प्रमुख हैं।

साहित्यिक और राष्ट्रीय आंदोलन में उनके अद्वितीय योगदान के चलते, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें भारतीय संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

उनके जीवन के अंतिम वर्षों में, 1954 में, उन्हें भारत गणराज्य के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

12 दिसंबर 1964 को, 78 वर्ष की आयु में, लंबी बीमारी के बाद मैथिलीशरण गुप्त का निधन हो गया। उन्होंने हिंदी कविता के इतिहास में युगों का अंतर किया और आज भी वे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम और भारतीय चेतना का एक अनिवार्य हिस्सा बने हुए हैं।

Point of View

बल्कि एक राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा था। उनके विचार और रचनाएँ आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक हैं।
NationPress
11/12/2025

Frequently Asked Questions

मैथिलीशरण गुप्त का क्या योगदान था?
उन्होंने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता को अपने काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।
भारत-भारती का क्या महत्व है?
यह कृति भारतीयों के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने का कार्य करती है।
गुप्त को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?
गांधी जी ने उनकी रचनाओं को अहिंसक आंदोलन के लिए आवश्यक सांस्कृतिक चेतना के रूप में देखा।
साकेत और यशोधरा का क्या महत्व है?
इन कृतियों में गुप्त ने नारी पात्रों को महाकाव्यिक गौरव प्रदान किया।
गुप्त का साहित्यिक दृष्टिकोण क्या था?
उनका दृष्टिकोण 'गृहस्थ कवि' का था, जिसमें नारी-मुक्ति को मर्यादा के भीतर रखा गया।
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