क्या स्वामी रामभद्राचार्य के बयान पर मायावती का ऐतराज उचित है?

सारांश
Key Takeaways
- स्वामी रामभद्राचार्य के बयान ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है।
- मायावती ने चुप रहने की सलाह दी है।
- बाबासाहेब के योगदान को समझना आवश्यक है।
- राजनीति में इस तरह के बयानों का प्रभाव पड़ता है।
- सामाजिक दृष्टिकोण से यह मामला महत्वपूर्ण है।
लखनऊ, 13 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। स्वामी रामभद्राचार्य के मनुस्मृति और बाबासाहेब अंबेडकर पर दिए गए बयान ने राजनीति में हलचल मचा दी है। बसपा प्रमुख मायावती ने इस पर तीव्र ऐतराज जताया है। उन्होंने बिना नाम लिए सुझाव दिया है कि भीमराव अम्बेडकर के भारतीय संविधान के निर्माण में उनके अद्वितीय योगदान के बारे में सही जानकारी नहीं होने के कारण, किसी भी गलत बयानबाज़ी से बचना और चुप रहना उचित होगा।
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा कि कुछ साधु-संत जो आए दिन विवादित बयान देकर सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं, उन्हें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के भारतीय संविधान में योगदान के बारे में सही जानकारी होनी चाहिए। इसलिए, गलत बयानबाज़ी करने के बजाय, यदि वे चुप रहें तो यह बेहतर होगा।
उन्होंने आगे कहा कि बाबा साहेब के अनुयायी मनुस्मृति का विरोध क्यों करते हैं? इसे समझने के लिए उन्हें अपनी जातिवादी द्वेष भावना को त्यागना चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें यह भी जानना चाहिए कि बाबा साहेब एक महान विद्वान थे। इस मामले में टिप्पणी करने वाले साधु-संत उनकी विद्वता के मामले में कुछ नहीं हैं। इसलिए इस विषय पर कुछ कहने से पहले उन्हें बचना चाहिए, यही एक अच्छी सलाह है।
ज्ञात हो कि एक निजी चैनल के कार्यक्रम में तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि स्मृति देश का पहला संविधान है। उन्होंने यह भी दावा किया कि मनु मनुस्मृति में ऐसी एक भी पंक्ति नहीं है जो भारतीय संविधान के खिलाफ हो। उनका कहना था कि यदि अंबेडकर साहब संस्कृत जानते तो वे मनुस्मृति को जलाने की गलती नहीं करते। उनके इस बयान के बाद देश की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। राजद, बसपा और अंबेडकर के पोते उन्हें घेरने में जुट गए हैं।