क्या ताहिरा कश्यप ने 'आर्टिफिशियल ब्यूटी स्टैंडर्ड' पर कविता सुनाई?

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क्या ताहिरा कश्यप ने 'आर्टिफिशियल ब्यूटी स्टैंडर्ड' पर कविता सुनाई?

सारांश

ताहिरा कश्यप ने अपनी नई कविता में आत्म-स्वीकृति और अनोखी खूबसूरती के महत्व पर जोर दिया है। इस कविता के माध्यम से वे समाज के आर्टिफिशियल ब्यूटी स्टैंडर्ड को चुनौती देती हैं। जानिए इस प्रेरणादायक कविता की खास बातें!

Key Takeaways

  • आत्म-स्वीकृति
  • अन्याय का सामना
  • सौंदर्य मानकों की चुनौती
  • खामियों को अपनाना
  • खुद की पहचान को संजोना

मुंबई, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। लेखिका और फिल्म निर्माता ताहिरा कश्यप ने इंस्टाग्राम पर एक भावनात्मक वीडियो साझा किया, जिसमें वह अपनी कविता के माध्यम से आत्म-स्वीकृति और अनोखी खूबसूरती का संदेश देती दिखीं। यह कविता समाज के सौंदर्य मानकों के खिलाफ एक प्रेरणादायक वक्तव्य बनकर उभरी है।

इंस्टाग्राम पर वीडियो को साझा करते हुए उन्होंने कैप्शन में लिखा, “जब लोग आपकी नाक, होंठ और चेहरे पर ध्यान देने लगते हैं, तो आपको एक संदूक में बंद कर देते हैं। मैं तुम्हें भीड़ में कैसे ढूंढ पाऊंगी...”

वीडियो में ताहिरा कहती हैं, "अक्सर लोग समाज के सौंदर्य मानकों के दबाव में अपनी खूबसूरती को खो देते हैं।" उन्होंने उन लोगों का जिक्र किया, जो सर्जरी के लिए पैसे जुटाते हैं ताकि उनकी नाक या होंठ समाज के तय मानकों के अनुसार दिखें। ताहिरा न केवल अभिनेताओं, बल्कि स्कूल, कॉलेज और आम नौकरी करने वालों की भी बात करती हैं, जो सोशल मीडिया पर एकसमान दिखने की होड़ में अपनी पहचान खो रहे हैं। वह कहती हैं, "यह अब बड़े पर्दे की बात नहीं, बल्कि हर पल हर किसी से मान्यता पाने की चाहत है।"

यह कविता न केवल आत्म-प्रेम को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज के आर्टिफिशियल ब्यूटी स्टैंडर्ड को चुनौती भी देती है। ताहिरा की कविता खुद की विशेषताओं को सेलिब्रेट करने की प्रेरणा देती है। वे कहती हैं, “तुम्हारे पतले होंठ तुम्हारी मुस्कान को उजागर करते हैं, तुम्हारी टेढ़ी नाक मुझे बास्केटबॉल कोर्ट की याद दिलाती है, जहां तुम खूब खेली। तुम्हारी झाइयां गालों पर बारिश की बूंदों सी हैं, जो तुम्हारे स्कूटर चलाने और कॉफी शॉप के प्रेम को दिखाती हैं।” घुंघराले बालों, घनी भौहें और यहां तक कि फीके मोजों को भी व्यक्तित्व का हिस्सा मानती हैं, जो हर इंसान को अनोखा बनाते हैं।

ताहिरा का कहना है कि अपनी खामियों को छुपाने से व्यक्ति अपनी चमक खो देता है। वे कहती हैं, “तुम्हारी छोटी-सी खामी सोने की खान से भी ज्यादा कीमती है। इसे संजोकर रखो।”

Point of View

बल्कि समाज में व्याप्त सौंदर्य मानकों को चुनौती देता है। यह कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपनी वास्तविक पहचान को खोते जा रहे हैं। उचित है कि हम अपने भीतर की खूबसूरती को पहचानें और उसे अपनाएं।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

ताहिरा कश्यप कौन हैं?
ताहिरा कश्यप एक प्रसिद्ध लेखिका और फिल्म निर्माता हैं।
ताहिरा की कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उनकी कविता आत्म-स्वीकृति और अनोखी खूबसूरती को अपनाने का संदेश देती है।
क्या यह कविता समाज के सौंदर्य मानकों के खिलाफ है?
हाँ, यह कविता समाज के आर्टिफिशियल ब्यूटी स्टैंडर्ड को चुनौती देती है।
कविता में ताहिरा ने किस बात पर जोर दिया है?
उन्होंने अपनी विशेषताओं को सेलिब्रेट करने और खामियों को छुपाने के बजाय अपनाने पर जोर दिया है।
क्या ताहिरा ने इस कविता को इंस्टाग्राम पर साझा किया?
जी हाँ, ताहिरा ने इस कविता का वीडियो इंस्टाग्राम पर साझा किया है।