क्या तालिबान में दरार और टीटीपी का उभार दक्षिण एशिया के लिए खतरा है?

सारांश
Key Takeaways
- पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंध बिगड़ रहे हैं।
- टीटीपी के हमले बढ़ रहे हैं।
- आईएसकेपी का बढ़ता प्रभाव।
- अल-कायदा और टीटीपी का संभावित गठबंधन।
- दक्षिण एशिया की सुरक्षा पर खतरा।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। इसके पीछे डूरंड रेखा को लेकर विवाद और तालिबान द्वारा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को कथित संरक्षण प्रदान करना शामिल है।
इसी स्थिति को काउंटर करने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) को मजबूत करने का एक खतरनाक खेल खेला।
आईएसकेपी के गठन से पहले, इस्लामिक स्टेट के संस्थापक अबु बक्र अल-बगदादी ने तालिबान से साथ आने का प्रस्ताव रखा था। बगदादी चाहता था कि तालिबान और आईएस मिलकर इस्लामिक खिलाफत स्थापित करें। लेकिन तालिबान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उनका मानना था कि वे आईएस का जूनियर पार्टनर नहीं बन सकते और अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर खुद शासन करना चाहते हैं। तभी से दोनों गुटों में टकराव बढ़ा है।
पाकिस्तान में टीटीपी के बढ़ते हमलों और सेना को हो रहे भारी नुकसान के चलते, आईएसआई ने नया खेल रचा। तालिबान से रिश्ते खराब होने पर, आईएसआई ने आईएसकेपी को सहारा दिया। आईएसकेपी के लिए यह प्रस्ताव इसलिए भी स्वीकार्य था क्योंकि पाकिस्तान की मदद से उसे अफगानिस्तान में जगह बनाने का अवसर मिल रहा था।
इस बीच, टीटीपी नए गठबंधनों की तलाश में है। खुफिया अधिकारियों के अनुसार, टीटीपी ने अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट से संपर्क साधा है। अल-कायदा तालिबान का समर्थक है और उसके हितों को अफगानिस्तान में नुकसान नहीं पहुंचाता।
2014 में गठित अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट अब तक क्षेत्र में खास प्रभाव नहीं डाल पाया है। लेकिन अगर टीटीपी और अल-कायदा एकजुट होते हैं, तो यह न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
बांग्लादेश में स्थिति और भी नाजुक हो सकती है। कई आतंकी संगठन भारत में मॉड्यूल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं और इनमें से अधिकांश अल-कायदा समर्थित हैं। हालांकि, आईएस का भी वहां कुछ समर्थन है।
शेख हसीना की सत्ता से विदाई के बाद, अल-कायदा ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और अपनी मीडिया शाखा 'अल-सहाब' पर 12 पन्नों का बयान जारी किया।
महमूद की इस टिप्पणी से स्पष्ट है कि अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट का मुख्य निशाना भारत है। यदि टीटीपी और अल-कायदा का गठबंधन होता है, तो यह पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।