क्या भारतीय आधुनिक नृत्य के शिल्पी उदय शंकर की विरासत अमर है?

सारांश
Key Takeaways
- उदय शंकर ने भारतीय आधुनिक नृत्य को नई पहचान दी।
- उन्होंने नृत्य को सांस्कृतिक सेतु बनाया।
- उनकी कृतियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुईं।
- उदय शंकर का योगदान आज भी प्रेरणादायक है।
- उनकी विरासत सदियों तक जीवित रहेगी।
नई दिल्ली, २५ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कला की दुनिया में कई ऐसे नाम हैं जो समय और बंधनों को पार कर अमर बन गए हैं। उदय शंकर ऐसे ही महान व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने नृत्य को सिर्फ एक प्रदर्शन कला नहीं बल्कि सांस्कृतिक सेतु बना दिया। उन्हें भारत में आधुनिक नृत्य का जन्मदाता माना जाता है। जब भारतीय शास्त्रीय नृत्य केवल परंपराओं में सीमित था, उन समय में उदय शंकर ने इसे विश्व मंच पर समकालीन रूप देकर नई पहचान दी। २६ सितंबर को हम उस अद्वितीय शख्सियत को याद करते हैं, जो इसी दिन हमारे बीच से विदा हो गए।
८ दिसंबर १९०० को जन्मे उदय शंकर की प्रारंभिक रुचि चित्रकला में थी। उन्होंने १९२० में लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट में पढ़ाई शुरू की। पढ़ाई के दौरान उन्होंने एक चैरिटी कार्यक्रम में भारतीय नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसने प्रसिद्ध रूसी बैले नर्तकी अन्ना पावलोवा को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उदय शंकर को अपने साथ मंच साझा करने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद उन्होंने बैले प्रस्तुतियों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
उदय शंकर ने किसी भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य में औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनके पास भारतीय कला, लोकनृत्य और परंपराओं का गहरा ज्ञान था। यूरोप में बैले और मंचीय सौंदर्यशास्त्र ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में ताण्डव नृत्य, शिव-पार्वती, लंका दहन, रिदम ऑफ़ लाइफ और रामलीला शामिल हैं, जिनमें वेशभूषा, ताल-लय, संगीत और मंच सज्जा सभी उनके द्वारा रचित थे।
१९३७ में उन्होंने यूरोप का पहला भारतीय नृत्य दल 'उदय शंकर एंड हिज़ हिंदू बैले' पेरिस में स्थापित किया। सात वर्षों तक उन्होंने यूरोप और अमेरिका में भारत की सांस्कृतिक छटा बिखेरी। उनकी प्रस्तुतियां न केवल कला प्रेमियों को आकर्षित करती थीं, बल्कि भारतीयता की वैश्विक पहचान भी बनाती थीं।
१९४८ में उदय शंकर ने 'कल्पना' नामक फिल्म बनाई, जो भारतीय सिनेमा की अनूठी प्रयोगात्मक कृति मानी जाती है। इसमें नृत्य, दृश्य कला और फिल्मांकन को एक साथ पिरोकर उन्होंने एक नई राह दिखाई।
रचनात्मकता और भारतीय नृत्य कला में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। १९६० में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला, इसके बाद १९६२ में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया। १९७१ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण, देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया।
अपनी कला को और अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए, उन्होंने १९६५ में कोलकाता में उदय शंकर सेंटर ऑफ़ डांस की स्थापना की, जो आज भी उनकी समृद्ध नृत्य परंपरा को संरक्षित और जीवित रखे हुए है।
२६ सितंबर १९७७ को कोलकाता में उदय शंकर का निधन हुआ। लेकिन भारतीय संस्कृति को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के लिए उनका योगदान सदियों तक अमर रहेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि वह भारतीय आधुनिक नृत्य के शिल्पी थे। एक ऐसे कलाकार जिन्होंने कला को सीमाओं से मुक्त कर दिया।