क्या यूएनएचसीआर ने पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों का निर्वासन रोकने की अपील की?

सारांश
Key Takeaways
- यूएनएचसीआर ने पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों का निर्वासन रोकने का अनुरोध किया है।
- अफगानिस्तान की स्थिति गंभीर है, जिसमें गरीबी और सूखा शामिल हैं।
- पाकिस्तान में शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
- यूएनएचसीआर को 258.6 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है।
- अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है।
नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मध्य बढ़ते तनाव के मद्देनजर, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने पाकिस्तान से अनुरोध किया है कि वह संवेदनशील अफगान शरणार्थियों का जबरन निर्वासन रोकें और उन्हें अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करें।
अफगानिस्तान पहले से ही गरीबी, सूखे और हालिया भूकंप से उत्पन्न समस्याओं से जूझ रहा है। नए अफगान शरणार्थियों के लौटने से यह संकट और भी गहरा हो गया है।
जेनेवा से 12 सितंबर को जारी एक बयान में, अफगानिस्तान के लिए यूएनएचसीआर के प्रतिनिधि अराफात जमाल ने इस्लामाबाद से अपील की कि जिन अफगानों को सुरक्षा की आवश्यकता है, उन्हें निर्वासित न किया जाए। उन्होंने कहा कि शरणार्थी एजेंसी पाकिस्तान के अधिकारियों के साथ मिलकर सबसे संवेदनशील समूहों की पहचान और सुरक्षा के लिए सहयोग करने को तैयार है।
जमाल ने चेतावनी दी कि यदि नए फंड नहीं मिले, तो यूएनएचसीआर अफगान परिवारों को दी जाने वाली जीवनरक्षक सहायता जारी नहीं रख पाएगा। एजेंसी ने अपनी क्षेत्रीय अपील को अपडेट करते हुए 258.6 मिलियन डॉलर की मांग की है।
यूएनएचसीआर के अनुसार, पाकिस्तान द्वारा "गैरकानूनी विदेशियों की वापसी योजना" को फिर से लागू करने के बाद से अप्रैल से अब तक 5.54 लाख से अधिक अफगान लौट चुके हैं, जिसमें अगस्त में ही 1.43 लाख लोग शामिल हैं। सितंबर के पहले हफ्ते में लगभग एक लाख अफगान पाकिस्तान से वापस लौटे, जिससे अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और सीमित सार्वजनिक सेवाओं पर और दबाव बढ़ गया है।
यूएनएचसीआर ने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान को अफगान शरणार्थियों के प्रति अपनी लंबे समय से चली आ रही मानवीय नीति को जारी रखना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक 26 लाख से अधिक अफगान नागरिक पड़ोसी देशों से निर्वासित किए जा चुके हैं। यह आंकड़ा जबरन विस्थापन के बड़े पैमाने और क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोग की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
भारी खाद्य संकट, सीमित आश्रय और कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच अफगानिस्तान इतनी बड़ी संख्या में लौट रहे लोगों को समायोजित करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है।