क्या यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025 स्थानीय कारीगरों की प्रतिभा को उजागर करने में सफल होगा?

सारांश
Key Takeaways
- स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार
- स्थानीय कारीगरों को पहचान मिलना
- पारंपरिक हस्तशिल्प का संरक्षण
- आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम
- सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आयोजन
नोएडा, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। स्वदेशी उत्पादों के विकास और ‘वोकल फॉर लोकल’ के संकल्प को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में 10 दिवसीय “यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025” का आयोजन नोएडा हाट, सेक्टर-33ए में आरंभ हुआ है।
यह मेला न केवल उत्तर प्रदेश के कारीगरों, शिल्पियों और स्थानीय उद्यमियों को अपनी कला और उत्पादों को प्रदर्शित करने का एक सशक्त मंच प्रदान कर रहा है, बल्कि अन्य राज्यों से आए कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित यह स्वदेशी मेला पारंपरिक उत्पादों की विस्तृत पहचान का माध्यम बन रहा है, और यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मेले में बिहार की मधुबनी पेंटिंग, तसर सिल्क, खादी कॉटन, और चंदेरी कपड़े जैसे पारंपरिक हस्तशिल्प और वस्त्र विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मधुबनी कला से जुड़े कलाकारों ने सरकार से मांग की है कि पारंपरिक उत्पादों पर लगने वाले जीएसटी को कम किया जाए ताकि उन्हें बाजार में उचित मूल्य मिल सके।
उनका कहना है कि यदि सरकार वास्तव में इन हस्तशिल्पों को वैश्विक स्तर पर ले जाना चाहती है तो उन्हें विशेष पैकेज, सब्सिडी या कर छूट जैसी सुविधाओं की आवश्यकता है। तसर सिल्क के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाने वाली उद्यमी शालिनी ने बताया, “हम यहाँ व्यापार नहीं, बल्कि कला को बढ़ावा देने आए हैं। हमारे स्टॉल पर 600 रुपये से लेकर 12 हजार रुपये तक के उत्पाद उपलब्ध हैं। लोग इन्हें केवल वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी देख रहे हैं।”
मेले में आने वाले आगंतुकों को पारंपरिक उत्पादों की खरीदारी के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद लेने का अवसर भी मिलेगा। आने वाले दिनों में विभिन्न जनपदों के लोक कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाएंगे। स्वदेशी मेला 2025 न केवल खरीदारी का माध्यम है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और कला के पुनर्जागरण का भी प्रतीक बन गया है। उम्मीद है कि यह पहल उत्तर प्रदेश के हस्तशिल्प और शिल्पकारों को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नई पहचान दिलाएगी।