क्या विशेषाधिकार समिति लोकतंत्र की गरिमा का प्रहरी है? : सतीश महाना
सारांश
Key Takeaways
- विशेषाधिकार समिति लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है।
- इसका उद्देश्य दंडात्मक कार्रवाई नहीं है।
- सदन की प्रतिष्ठा को बनाए रखना आवश्यक है।
- सभी जनप्रतिनिधियों को अपने अधिकारों का प्रयोग सीमित करना चाहिए।
- लोकतंत्र में जिम्मेदारियों का महत्व भी है।
लखनऊ, 16 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि विशेषाधिकार समिति लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है, जो विधायिका की गरिमा, अधिकारों और संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा सुनिश्चित करती है। समिति का उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करना और सदन की प्रतिष्ठा बनाए रखना है।
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने उत्तर प्रदेश विधानसभा की विशेषाधिकार समिति की उद्घाटन बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि इस समिति का लोकतांत्रिक व्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह विधायिका की गरिमा, अधिकारों और मर्यादाओं की रक्षा का सशक्त माध्यम है, इसलिए इसके कार्यों का निर्वहन पूरी औपचारिकता और संवैधानिक मर्यादा के साथ किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी या अनावश्यक विवाद की स्थिति उत्पन्न न हो।
उन्होंने समिति के सदस्यों से कहा कि समिति के कार्य पर किसी को आपत्ति नहीं है, किंतु यह आवश्यक है कि सभी जनप्रतिनिधि और संबंधित पक्ष अपने अधिकारों का प्रयोग एक निर्धारित सीमा के भीतर करें। लोकतंत्र में अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारियों का भी समान महत्व है।
महाना ने स्पष्ट किया कि किसी भी संस्था या व्यक्ति को ऐसी भाषा या आचरण से बचना चाहिए, जिससे सदन की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगे। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सभी जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह हैं। जनता ने जिन अपेक्षाओं के साथ उन्हें चुना है, उन पर खरा उतरना प्राथमिक जिम्मेदारी है।
विशेषाधिकार समिति का उद्देश्य दंडात्मक कार्रवाई नहीं, बल्कि व्यवस्था की गरिमा बनाए रखना और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करना है। उन्होंने समिति के सभी सदस्यों से संयम, धैर्य और मर्यादा के साथ कार्य करने की अपील की। इससे पूर्व विशेषाधिकार समिति के सदस्यों ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना का अंगवस्त्र एवं पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया।