क्या 'आओगे जब तुम हो साजना...' के बाद युवाओं में उस्ताद राशिद खान का क्रेज बढ़ा?

सारांश
Key Takeaways
- उस्ताद राशिद खान का संगीत युवाओं के बीच शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बना रहा है।
- फिल्म 'जब वी मेट' का गाना 'आओगे जब तुम हो साजना' ने एक नई पीढ़ी को जोड़ा।
- उस्ताद राशिद खान ने रामपुर-सहसवान घराने की परंपरा को आगे बढ़ाया।
- उनकी विशिष्ट शैली ने उन्हें विद्वान संगीतकार बनाया।
- उन्होंने शास्त्रीय संगीत की रागों और ठुमरी में अद्भुत प्रस्तुतियां दी हैं।
मुंबई, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। जब भी भारतीय शास्त्रीय संगीत की चर्चा होती है, तो अक्सर यह धारणा बनती है कि यह केवल वृद्ध लोगों या संगीत के विशेषज्ञों के लिए है, जिसे समझना सामान्य लोगों के लिए कठिन है। लेकिन उस्ताद राशिद खान ने फिल्म 'जब वी मेट' के 'आओगे जब तुम हो साजना' जैसे गाने से इस सोच को बदल दिया और हर आयु वर्ग के लोगों के दिलों में एक खास स्थान बना लिया।
'आओगे जब तुम हो साजना' एक ऐसा गीत है जिसमें उस्ताद राशिद खान ने प्यार, इंतजार और अधूरेपन के दर्द को इतनी गहराई से प्रस्तुत किया कि युवा वर्ग उस भावनात्मक लहर में बह गया। यह वह समय था जब युवा धीरे-धीरे शास्त्रीय संगीत से दूर होते जा रहे थे। इस गाने के माध्यम से उन्होंने नई पीढ़ी को गहराई से जोड़ने का काम किया। युवा पीढ़ी ने पहली बार महसूस किया कि 'राग' भी रुला सकता है और 'तान' भी दिल को छू सकता है। यह गाना आज भी कई लोगों की म्यूजिक प्लेलिस्ट का हिस्सा है।
उस्ताद राशिद खान का जन्म 1 जुलाई 1968 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के सहसवान कस्बे में हुआ। वह रामपुर-सहसवान घराने से संबंधित थे। उन्हें संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था, वह घराने के संस्थापक उस्ताद इनायत हुसैन खान के परपोते और प्रसिद्ध गायक उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे थे। बचपन में उनकी रुचि क्रिकेट में अधिक थी और वह गायक नहीं बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय किया। उनके नाना और गुरु, उस्ताद निसार हुसैन खान ने उन्हें संगीत सिखाने का निर्णय लिया। वह सख्त अनुशासन के व्यक्ति थे। हर सुबह चार बजे से रियाज शुरू होता था और कई घंटे तक अभ्यास चलता था। एक बच्चे के रूप में राशिद के लिए यह सब बहुत कठिन था।
हालांकि, जैसे-जैसे समय बीता, संगीत की साधना रंग लाई और आगे चलकर राशिद खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्तंभ बन गए।
राशिद खान ने केवल 11 वर्ष की आयु में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम किया और 14 वर्ष की उम्र में आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी, कोलकाता में दाखिला लिया। यहीं से उनका करियर असल में आकार लेने लगा। 1994 तक उन्हें अकादमी में संगीतकार के रूप में स्वीकार कर लिया गया, और जल्द ही वह 'विद्वान संगीतकार' के रूप में प्रसिद्ध होने लगे। उन्होंने रामपुर-सहसवान घराने की परंपरा को निभाते हुए ख्याल, तराना, ठुमरी और भजन जैसी विधाओं में महारत हासिल की। उन्होंने अपनी एक अलग, विशिष्ट शैली विकसित की।
'आओगे जब तुम हो साजना' के अलावा, उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों में कई यादगार गाने दिए, जिनमें फिल्म 'माई नेम इज खान' का 'अल्लाह ही रहम' और 'शादी में जरूर आना' का 'तू बनजा गली बनारस की' जैसे गीत शामिल हैं। राशिद खान ने न केवल फिल्मों के लिए, बल्कि शास्त्रीय संगीत की रागों और ठुमरी जैसी विधाओं में भी अपनी अद्भुत प्रस्तुति दी। उनकी राग-आधारित प्रस्तुतियां जैसे 'अलबेला सजन आयो रे' और 'याद पिया की आए' लोगों के दिलों को आज भी छू जाती हैं।