क्या 'पीपुल्स जनरल' वीके कृष्ण राव को हम कभी भूल पाएंगे?

सारांश
Key Takeaways
- वीके कृष्ण राव का जन्म १९२३ में हुआ था।
- उन्हें परम विशिष्ट सेवा पदक मिला।
- उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने कई राज्यों में राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
- उनका नेतृत्व भारतीय सेना की ताकत को बढ़ाने में सहायक रहा।
नई दिल्ली, १५ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। 'पीपुल्स जनरल' के रूप में जाने जाने वाले जनरल वीके कृष्ण राव को १६ जुलाई को पूरा देश एक महान और दूरदर्शी सैन्य अधिकारी के रूप में याद करता है। वीके कृष्ण राव भारत के पूर्व थल सेना प्रमुख रहे हैं। उनकी असाधारण सेवाओं के लिए उन्हें परम विशिष्ट सेवा पदक से नवाजा गया था।
१९२३ में विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में जन्मे वीके कृष्ण राव सिर्फ एक साहसी योद्धा नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी रणनीतिकार और निष्ठावान प्रशासक भी थे। उन्होंने अगस्त १९४२ में महार रेजिमेंट से सेना में कमीशन प्राप्त किया और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा, उत्तर-पश्चिम सीमांत और बलूचिस्तान में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं। विभाजन के समय पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में भी उन्होंने हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में सेवा दी।
१९४७-४८ के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वे जम्मू-कश्मीर में ३ महार बटालियन के कंपनी कमांडर रहे, जिसे उन्होंने बाद में अपने अधीन लिया। वे १९४९ से १९५१ के बीच राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के संस्थापक प्रशिक्षकों में से एक थे।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (१९७१) में जनरल राव ने सिलहट सेक्टर में ८ माउंटेन डिवीजन के जीओसी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रणनीति और नेतृत्व ने भारतीय सेना को ऐतिहासिक विजय दिलाई। यही युद्ध था जिसने भारत के सैन्य पराक्रम को वैश्विक मान्यता दिलाई। जनरल राव का नाम इस पराक्रम के स्तंभों में हमेशा के लिए अमर हो गया।
उन्होंने जून १९८१ में भारतीय सेना के १४वें प्रमुख के रूप में पदभार संभाला और १९८३ में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने सेना को आधुनिक सोच, तकनीक और रणनीति से सुसज्जित किया। जनरल राव सिर्फ एक सेनाध्यक्ष ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी लीडर थे, जिन्होंने हर जवान में राष्ट्र का उज्ज्वल भविष्य देखा।
सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, जनरल राव ने नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्यों के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया। १९८९-९० में वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, जब राज्य में आतंकवाद अपने चरम पर था।
उनके योगदानों के लिए, उन्हें आंध्र विश्वविद्यालय से मानद डी.लिट., श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से 'डॉक्टर ऑफ लॉ' और तेलुगु विश्वविद्यालय से 'डॉक्टर ऑफ लेटर्स' की मानद उपाधियाँ प्रदान की गईं।