क्या वाराणसी के कुम्हारों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है, पारंपरिक दीयों की मांग में वृद्धि?

सारांश
Key Takeaways
- स्थानीय उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है।
- दीपावली पर दीयों की डिमांड में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
- कुम्हारों के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण है।
- पीएम मोदी के अभियान से स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा मिला है।
- पारंपरिक कला को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
वाराणसी, 16 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' अभियान ने स्थानीय व्यापारों को जबरदस्त संजीवनी प्रदान की है। इसका सकारात्मक प्रभाव काशी के पारंपरिक कुम्हारों पर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है, जो मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने में निपुण हैं। 'स्वदेशी अपनाओ' और 'मेक इन इंडिया' जैसे नारे इस बार कुम्हारों के चेहरों पर खुशी की लहर लेकर आए हैं।
दीपावली के आगमन के साथ ही पूरे देश में तैयारियों का दौर चल रहा है और काशी की गलियों में पारंपरिक मिट्टी के दीयों की चमक स्पष्ट नजर आ रही है। सुद्धिपुर गांव में लगभग ढाई हजार कुम्हार दिन-रात दीये बनाने में लगे हुए हैं। पहले मंदी का सामना कर चुके इन कुम्हारों के चेहरे फिर से उम्मीद और जोश से भरे हुए हैं।
कुम्हार सुनील कुमार ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि इस दीपावली पर पारंपरिक दीयों की मांग पिछले साल की तुलना में कई गुना बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि डिमांड को पूरा करने के लिए कई घंटों तक काम करना पड़ रहा है। यह सब पीएम मोदी के स्वदेशी उत्पादों को अपनाने की अपील के कारण संभव हो पाया है। पहले एक ऐसा दौर था जब कुम्हार समाज को दूसरे व्यवसायों के बारे में सोचना पड़ रहा था क्योंकि इस उद्योग में मंदी आ गई थी।
करीब 30 वर्षों से इस व्यवसाय में लगे कुम्हार दिनेश प्रजापति ने कहा कि दीयों की मांग हर मौसम में होती है, लेकिन इस बार पारंपरिक दीयों की डिमांड इतनी बढ़ गई है कि कई जगह ऑर्डर पूरा करना भी मुश्किल हो रहा है। उनके अनुसार, इस दीपावली उनका व्यवसाय लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ा है।
रघुराई प्रजापति ने बताया कि पिछले वर्षों से कठिनाइयों का सामना कर रहे कुम्हारों के लिए यह दीपावली नई उम्मीद लेकर आई है। उन्होंने कहा कि अब जरूरत है कि 'स्थानीय उत्पाद अपनाओ' जैसे अभियानों को और मजबूत किया जाए, ताकि यह पारंपरिक कला फिर से अपनी पुरानी पहचान हासिल कर सके।