क्या वीपी मेनन ने आजाद भारत के निर्माण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी?

सारांश
Key Takeaways
- वीपी मेनन का योगदान आजाद भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण था।
- उनकी कूटनीति ने 562 रियासतों का एकीकरण संभव बनाया।
- सरदार पटेल के साथ मिलकर उन्होंने रियासतों के विलय में अहम भूमिका निभाई।
- वीपी मेनन की विनम्रता और समझदारी ने राजाओं को भारत से जोड़ा।
- उनकी कहानी आज भी प्रेरणादायक है।
नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब सरदार वल्लभभाई पटेल ने 562 रियासतों को एकीकृत करने का अभियान शुरू किया, तब वीपी मेनन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही।
वप्पाला पंगुन्नी मेनन, एक साधारण नौकरशाह, ने असाधारण कूटनीति का परिचय देते हुए भारत को विखंडन से बचाया। सरदार पटेल की दृढ़ता और मेनन की चतुराई ने मिलकर एक ऐसे चमत्कार का निर्माण किया, जिसके लिए आज भी सरदार पटेल को श्रेय दिया जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि बिना मेनन के यह एकीकरण असंभव था।
वीपी मेनन का जन्म 30 सितंबर 1893 को केरल के ओट्टापलम के छोटे से गांव पनमन्ना में हुआ। उनके पिता एक स्कूल के प्रधानाचार्य थे और मेनन अपने बारह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।
ब्रिटिश राज के दौरान, वीपी मेनन ने भारत सरकार के सचिव के रूप में कार्य किया और बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के राजनीतिक सलाहकार बने। उन्होंने सरदार पटेल के साथ मिलकर 500 से अधिक रियासतों को एकीकृत किया। विभाजन के समय, जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गतिरोध था, तब मेनन ने माउंटबेटन, नेहरू और पटेल को विभाजन का प्रस्ताव दिया। उन्होंने एक्सेशन इंस्ट्रूमेंट का मसौदा तैयार किया, जो रियासतों को भारत या पाकिस्तान से जुड़ने का कानूनी आधार प्रदान करता था।
1947 में आजादी के बाद, सरदार पटेल को स्टेट्स मिनिस्ट्री का जिम्मा सौंपा गया, और वीपी मेनन उनके सचिव बने। ब्रिटिश राज के खत्म होने के बाद, रियासतें स्वतंत्र हो गईं, लेकिन अधिकांश राजा स्वतंत्र रहना चाहते थे। जूनागढ़ और हैदराबाद जैसी रियासतें पाकिस्तान की ओर झुकी थीं, लेकिन सरदार पटेल ने कठोर रुख अपनाया और वीपी मेनन ने कूटनीति का सहारा लिया। उन्होंने राजाओं के दरबारों में जाकर उन्हें भारत से जुड़ने के लाभ बताए।
जूनागढ़ का मामला सबसे कठिन था। नवाब पाकिस्तान जाना चाहता था, लेकिन हिंदू बहुल आबादी ने विरोध किया। वीपी मेनन ने सरदार पटेल के निर्देश पर जनमत संग्रह करवाया, जिससे जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया।
हैदराबाद में निजाम ने सशस्त्र प्रतिरोध किया, लेकिन सरदार पटेल और वीपी मेनन के प्रयासों से हैदराबाद का विलय हुआ। जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह ने एक्सेशन साइन करने से इनकार किया, लेकिन वीपी मेनन ने उन्हें विलय के लिए तैयार किया।
जम्मू-कश्मीर में भी वीपी मेनन की भूमिका निर्णायक रही। महाराजा हरि सिंह विलय को लेकर स्पष्ट नहीं थे। 26 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबायलियों के हमले के बाद, वीपी मेनन ने हरि सिंह से मुलाकात की और उन्हें एक्सेशन साइन करवाया।
वीपी मेनन ने बाद में 'द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स' पुस्तक में इन घटनाओं का विवरण दिया है। उनकी सफलता का राज उनकी विनम्रता और समझ थी। वे राजाओं को धमकी न देकर, उनके हितों का ध्यान रखते हुए विलय का प्रस्ताव रखते थे। उनके प्रयासों से कई राजसी परिवारों ने अपने रियासतों का भारत में विलय किया। भारत का एकीकरण वीपी मेनन की कूटनीति का अद्भुत उदाहरण है।
वीपी मेनन ने देश के एकीकरण में अहम योगदान दिया और 31 दिसंबर 1965 को 72 साल की उम्र में बेंगलुरु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।