क्या एच-1बी वीजा फीस हाइक से टेक्नोलॉजी उद्योग प्रभावित होगा?

सारांश
Key Takeaways
- नैसकॉम एच-1बी वीजा फीस में वृद्धि का आकलन कर रहा है।
- अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय तकनीकी प्रतिभाओं पर निर्भर हैं।
- भारत में जीसीसी की संख्या बढ़ने की उम्मीद है।
- भारतीय आईटी कंपनियाँ वीजा पर निर्भरता कम कर रही हैं।
- नवीनतम नीति परिवर्तन का उद्योग पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
नई दिल्ली, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर के प्रमुख संगठन नैसकॉम (नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज) ने 21 सितंबर से लागू होने वाले एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर सालाना शुल्क के अमेरिकी प्रशासन के निर्णय के प्रभाव का गहन आकलन शुरू कर दिया है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास के माध्यम से संपर्क बनाए हुए है और प्रमुख टेक उद्योग संगठन नैसकॉम से भी चर्चा कर रहा है।
नई एच-1बी वीजा शुल्क का सबसे अधिक प्रभाव अमेरिकी कंपनियों पर पड़ने की उम्मीद है, क्योंकि ये विशेष और उच्च-कौशल वाले टेक पदों के लिए भारतीयों पर निर्भर हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि नए वीजा शुल्क के नियमों के बाद अमेरिका में प्रतिभा की कमी को पूरा करने के लिए भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) की एक नई लहर शुरू हो सकती है।
भारत के पास सबसे अधिक एच-1बी वीजा हैं, इसके बाद चीन का स्थान है।
इस बीच, जीसीसी भारत में अपनी प्रतिभा को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, जिसमें 48 प्रतिशत जीसीसी 2024 के स्तर से अधिक अपनी कार्यबल बढ़ाने का इरादा रखते हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस सप्ताह कहा कि भारत में दुनिया के लगभग आधे जीसीसी स्थित हैं, जो अब इनवोवेशन, आरएंडडी और नेतृत्व में सबसे आगे हैं।
उन्होंने 'सीआईआई जीसीसी बिजनेस समिट' में विशेष मंत्री योजना और रिपोर्ट बैक को संबोधित करते हुए कहा, "जीसीसी इनोवेशन और रोजगार सृजन में भारत की नेतृत्व क्षमता को मजबूत करेंगे और उचित नीतियों, अवसंरचना और कौशल विकास के माध्यम से, यह क्षेत्र विकसित भारत 2047 की हमारी यात्रा को परिभाषित कर सकता है।"
2021 से अमेरिका स्थित कंपनियां कुल जीसीसी के लगभग 70 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार रही हैं।
हाल के वर्षों में, यूके, ईएमईए और एपीएसी क्षेत्रों के जीसीसी ने भी भारत में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है।
भारत में लगभग 1,700 जीसीसी हैं और 2030 तक यह संख्या 2,100 से अधिक होने का अनुमान है।
टेक महिंद्रा के पूर्व सीईओ और प्रबंध निदेशक सी. पी. गुरनानी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय आईटी कंपनियों ने एच-1बी वीजा पर अपनी निर्भरता को काफी कम कर दिया है और इसके लिए आवेदन 50 प्रतिशत से अधिक घट गए हैं।
उन्होंने कहा, "यह परिवर्तन हमारी रणनीति का परिणाम है कि हम स्थानीय स्तर पर अधिक लोगों को रोजगार दें, ऑटोमेशन में निवेश करें और अपने वैश्विक वितरण मॉडल को बेहतर बनाएं। भले ही वीजा शुल्क में बदलाव आए, लेकिन इसका हमारे व्यवसाय पर बहुत कम प्रभाव होगा, क्योंकि हम पहले ही इस बदलाव के अनुसार स्वयं को ढाल चुके हैं।"