क्या शांति विधेयक मोदी सरकार का सबसे बड़ा वैज्ञानिक सुधार है, जिसने परमाणु क्षेत्र में 60 साल की रुकावट तोड़ी?
सारांश
Key Takeaways
- शांति विधेयक ने परमाणु क्षेत्र में 60 साल की रुकावट को तोड़ा।
- यह विधेयक स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा के लिए आधार बनेगा।
- सरकार का लक्ष्य 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावॉट तक बढ़ाना है।
- यह विधेयक स्वास्थ्य क्षेत्र में न्यूक्लियर मेडिसिन का विस्तार करेगा।
- भारत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर की दिशा में अग्रसर है।
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। शांति विधेयक मोदी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सुधारों में से एक माना जा रहा है। इस विधेयक ने परमाणु क्षेत्र में पिछले लगभग 60 वर्षों से चली आ रही रुकावट को समाप्त कर दिया है। यह जानकारी केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को दी।
उन्होंने बताया कि सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी शांति (एसएचएएनटीआई) विधेयक भारत में परमाणु क्षेत्र में एक ऐतिहासिक परिवर्तन लाएगा। इससे शांतिपूर्ण, स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा के लिए परमाणु शक्ति का बेहतर उपयोग संभव होगा। साथ ही, सुरक्षा, देश की संप्रभुता और जनहित से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इतने बड़े सुधार की कल्पना भी पिछले छह दशकों में संभव नहीं थी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और नेतृत्व का परिणाम है कि पुराने डर और रुकावटों को हटाकर भारत की नीतियों को बेहतर बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल की पहचान ही बड़े और प्रभावशाली सुधार हैं, जिनमें विज्ञान, नवाचार और उद्यमिता पर विशेष ध्यान दिया गया है। पहले के सुधार राजनीतिक और रणनीतिक फैसलों से जुड़े थे, जबकि मोदी 3.0 उन क्षेत्रों में परिवर्तन के लिए याद किया जाएगा, जो भारत के तकनीकी और आर्थिक भविष्य को निर्धारित करते हैं।
भारत की परमाणु नीति पर चर्चा करते हुए मंत्री ने बताया कि डॉ. होमी जहांगीर भाभा के समय से ही भारत का परमाणु कार्यक्रम विकास, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा के लिए प्रारंभ हुआ था। शांति विधेयक इसी सोच को आगे बढ़ाता है और स्वच्छ बिजली, चिकित्सा उपयोग और शोध के लिए परमाणु ऊर्जा के विस्तार की अनुमति देता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि एआई, क्वांटम तकनीक और डेटा आधारित अर्थव्यवस्था के युग में निरंतर बिजली की आवश्यकता होती है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह दिन-रात विश्वसनीय बिजली प्रदान करती है, जबकि कुछ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हमेशा उपलब्ध नहीं होते।
उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे भारत कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों से दूर होता जा रहा है, वैसे-वैसे परमाणु ऊर्जा उन्नत तकनीक, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और रणनीतिक क्षेत्रों को सहारा देगी।
मंत्री ने कहा कि 2014 में भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता लगभग 4.4 गीगावॉट थी, जो अब बढ़कर करीब 8.7 गीगावॉट हो गई है। सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक इसे लगभग 100 गीगावॉट तक पहुंचाया जाए, जिससे देश की करीब 10 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से प्राप्त हो सके और नेट जीरो लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिले।
उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र में परमाणु विज्ञान की बढ़ती भूमिका पर भी बल दिया और कहा कि कैंसर की जांच और इलाज में न्यूक्लियर मेडिसिन और आइसोटोप का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे कई लोगों की जान बचाई जा रही है। इससे यह स्पष्ट है कि आज परमाणु विज्ञान मानव कल्याण और सामाजिक उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभर रहा है।
भविष्य की तैयारियों का जिक्र करते हुए मंत्री ने कहा कि भारत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर की दिशा में भी अग्रसर है। ये घनी आबादी वाले शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों और नए आर्थिक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं और ऊर्जा सुरक्षा के साथ पर्यावरण की भी रक्षा करेंगे।
उन्होंने कहा कि शांति विधेयक को वैज्ञानिकों, उद्योग जगत, स्टार्टअप्स और नवाचार से जुड़े लोगों का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ है। यह दर्शाता है कि भारत के परमाणु क्षेत्र को आधुनिक बनाने की आवश्यकता पर देश में आम सहमति है। यह विधेयक मोदी सरकार 3.0 के उस दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें विज्ञान आधारित नीतियों से भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनाने का लक्ष्य रखा गया है।