क्या सिंहावलोकन 2025: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेमिसाल रहा यह साल?
सारांश
Key Takeaways
- अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए सकारात्मक संकेत।
- सरकारी निवेश ने विकास को गति दी।
- खुदरा महंगाई दर में गिरावट।
- आईपीओ का रिकॉर्ड स्तर पर धन जुटाना।
- घरेलू निवेशकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हम वर्ष 2025 के अंतिम चरण में हैं और नया साल (2026) अब बस कुछ ही दिन दूर है। साल 2025 भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस साल अनेक परिवर्तन और नई घटनाएं हुईं, जिनका प्रभाव देश के विकास, नागरिकों की दैनिक जिंदगी और शेयर बाजार पर पड़ा। कुछ क्षेत्रों में तेजी आई, जबकि कुछ में धीरे-धीरे परिवर्तन देखने को मिला। इस रिपोर्ट में हम साल 2025 के 6 प्रमुख कारकों पर गौर करेंगे, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को आकार दिया और इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
साल 2025 में भारत ने फिर से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शीर्ष स्थान हासिल किया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान इस वित्त वर्ष के लिए 6.7 प्रतिशत से 6.9 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष के लिए 6.5 प्रतिशत से 6.9 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की। इसका मुख्य कारण प्रत्यक्ष आयकर छूट, उदार मौद्रिक नीति, जीएसटी सुधार और अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते हैं।
आईएमएफ और आरबीआई के अनुसार, साल 2025 में इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सरकारी निवेश से विकास को काफी गति मिली।
इसके अतिरिक्त, अक्टूबर 2025 में खुदरा महंगाई केवल 0.25 प्रतिशत रही, जो कि आरबीआई के 4 प्रतिशत लक्ष्य से काफी कम है। वहीं दिसंबर एमपीसी बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट को 25 बेसिस पॉइंट घटाकर 5.25 प्रतिशत कर दिया। इस प्रकार इस साल चौथी बार केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट को कम किया है, जिससे लोगों के लिए लोन लेना आसान हो गया और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला।
इतना ही नहीं, इस वर्ष आईटी, बीपीओ, कंसल्टिंग और रिमोट हेल्थ/एजुकेशन जैसी सेवाओं का निर्यात भी मजबूत रहा। आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मजबूत सेवा निर्यात और रेमिटेंस ने चालू खाता संतुलन को बनाए रखने में मदद की, भले ही ऊर्जा की कीमतों और टैरिफ संबंधी अनिश्चितताएं बनी रहीं।
अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 तक 86 आईपीओ ने लगभग 1.71 लाख करोड़ रुपए जुटाए, जो पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुना है। नई लिस्टिंग्स अधिकतर ओवरसब्सक्राइब हुईं और निफ्टी से लगभग चार गुना बेहतर रिटर्न दिया। यह घरेलू निवेशकों, म्यूचुअल फंड्स और रिटेल निवेशकों के योगदान से संभव हुआ।
हालांकि इस दौरान विदेशी निवेश में अस्थिरता देखी गई। वहीं घरेलू निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार को मजबूत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एसआईपी, बढ़ते डीमैट अकाउंट्स और 'गिरावट पर खरीदारी' के मानसिकता ने बाजार को मजबूती प्रदान की।