क्या टीवी का 'रावण' सच में खलनायक था? जानें अरविंद त्रिवेदी की प्रेरणादायक कहानी

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क्या टीवी का 'रावण' सच में खलनायक था? जानें अरविंद त्रिवेदी की प्रेरणादायक कहानी

सारांश

क्या आप जानते हैं कि टीवी का रावण, अरविंद त्रिवेदी, असल जिंदगी में कितने धार्मिक थे? उनके किरदार ने उन्हें भले ही खलनायक बना दिया, लेकिन उनकी कहानी में है प्रेरणा और संघर्ष। जानें इस अद्भुत अभिनेता के जीवन के अनकहे किस्से।

Key Takeaways

  • अरविंद त्रिवेदी का रावण का किरदार अद्भुत था।
  • उनकी अभिनय यात्रा ने उन्हें सिनेमा और राजनीति दोनों में पहचान दिलाई।
  • उन्होंने अपनी धार्मिकता को अपने खलनायक छवि से अलग रखा।
  • उनकी कहानी प्रेरणा और संघर्ष से भरी है।
  • किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके किरदार से परे होनी चाहिए।

मुंबई, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1987 में रामानंद सागर का धारावाहिक 'रामायण' केवल मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि यह दर्शकों की आस्था का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था। इस धारावाहिक के हर पात्र ने सभी के दिलों में अपनी एक खास पहचान बनाई थी, लेकिन एक ऐसा चेहरा था, जिसने लोगों को न केवल डराया बल्कि अपने अभिनय से उन्हें प्रभावित भी किया, और वह चेहरा था अभिनेता अरविंद त्रिवेदी का।

जब टीवी स्क्रीन पर रावण की गूंजती आवाज सुनाई देती थी, तो दर्शक एक पल के लिए ठहर जाते थे।

अरविंद त्रिवेदी ने रावण के किरदार को इस कदर जीवंत किया कि दर्शक उन्हें असल में रावण समझने लगे। जहां भी वह जाते, लोग उन्हें 'रावण' के नाम से ही पुकारते थे। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि उनका अभिनय कितना प्रभावशाली था।

8 नवंबर 1938 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे अरविंद त्रिवेदी को बचपन से ही अभिनय में गहरी रुचि थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने थिएटर से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उस समय गुजराती रंगमंच में बहुत सक्रियता थी, और उनके बड़े भाई उपेंद्र त्रिवेदी भी अभिनय की दुनिया में अपने नाम कमा रहे थे। दोनों भाइयों ने मिलकर गुजराती थिएटर और सिनेमा को नई दिशा दी।

अरविंद त्रिवेदी ने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें हिंदी और गुजराती दोनों भाषाएं शामिल हैं। 'जेसल तोरल', 'कुंवरबाई नु मामेरू', 'वीर मंगदा वाला', और 'देश रे जोया दादा परदेश जोया' जैसी गुजराती फिल्मों में उनके किरदार आज भी लोगों को याद हैं।

1987 में रामानंद सागर की 'रामायण' के लिए, अरविंद त्रिवेदी एक साधु का किरदार निभाने की उम्मीद लेकर ऑडिशन देने गए थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने डायलॉग बोले, उनकी आवाज, चेहरा और हावभाव देखकर रामानंद सागर ने उन्हें रावण का रोल ऑफर कर दिया। यही वह क्षण था, जिसने अरविंद त्रिवेदी के जीवन को बदल दिया।

'रामायण' में काम करने से जहां वह सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर, घर-घर में रावण के किरदार से पहचानने के कारण लोग उन्हें अलग नजरों से देखने लगे थे। कई लोग उन्हें अपने घर बुलाने से भी कतराते थे। यह जानकारी खुद अरविंद ने एक इंटरव्यू में साझा की थी। उन्होंने हंसते हुए बताया था, "लोग मुझे खलनायक समझते हैं, लेकिन मैं असल जीवन में बहुत धार्मिक इंसान हूं।"

रामायण की अपार सफलता के बाद, उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1991 में वे गुजरात के साबरकांठा से लोकसभा सांसद चुने गए। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में पांच साल तक संसद में कार्य किया। इसके बाद 2002 में उन्हें सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने भारतीय फिल्मों के लिए नीतिगत कार्य किए।

अरविंद त्रिवेदी को अपने अभिनय के लिए गुजरात सरकार से सात बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। 6 अक्टूबर 2021 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके निधन की खबर सुनकर रामायण के उनके सह-कलाकार, राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया ने भावुक श्रद्धांजलि दी।

Point of View

अरविंद त्रिवेदी की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी चरित्र का प्रभाव केवल अभिनय से नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के जीवन के अनुभवों से भी होता है। उनका जीवन और करियर हमारे समाज को यह संदेश देते हैं कि हमें किसी भी व्यक्ति को उसके किरदार से परे देखना चाहिए।
NationPress
07/11/2025

Frequently Asked Questions

अरविंद त्रिवेदी का जन्म कब हुआ?
अरविंद त्रिवेदी का जन्म 8 नवंबर 1938 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था।
उन्हें कितनी फिल्में मिली हैं?
उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया है।
रामायण में किस किरदार ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई?
रामायण में रावण का किरदार निभाने से उन्हें विशेष पहचान मिली।
उनकी राजनीति में क्या भूमिका थी?
वे 1991 में गुजरात के साबरकांठा से लोकसभा सांसद बने।
अरविंद त्रिवेदी का निधन कब हुआ?
उनका निधन 6 अक्टूबर 2021 को हुआ।