क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर रोक लगाई और विशेषज्ञ समिति बनाने पर विचार किया?

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क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर रोक लगाई और विशेषज्ञ समिति बनाने पर विचार किया?

सारांश

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर रोक लगाकर विशेषज्ञ समिति बनाने की प्रक्रिया पर विचार किया है। यह निर्णय पर्यावरणीय पहलुओं की समीक्षा के लिए आवश्यक है, जिससे खनन गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो सके। क्या यह कदम पर्यावरण संरक्षण में सहायक होगा?

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर रोक लगाई।
  • एक नई विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा।
  • पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक पहलुओं की समीक्षा आवश्यक है।
  • खनन गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण का प्रयास किया जा रहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, 27 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिए गए निर्देशों को फिलहाल स्थगित कर दिया है। शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है, क्योंकि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और अदालत की टिप्पणियों को विभिन्न तरीकों से समझा और प्रस्तुत किया जा रहा है।

सोमवार को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत की अगुवाई में तीन जजों की पीठ (जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह) ने यह निर्णय सुनाया। पीठ ने स्वप्रेरित याचिका 'अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की परिभाषा एवं संबंधित मुद्दे' में नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को निर्धारित की है।

कोर्ट ने आदेश में कहा कि जब तक एक नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन नहीं किया जाता, तब तक पूर्व की समिति की सिफारिशें और अदालत के निर्देश लागू नहीं होंगे। अदालत का मानना है कि किसी भी अंतिम निर्णय से पहले वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक पहलुओं की समग्र समीक्षा आवश्यक है।

पीठ ने कहा कि वह एक नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी गठित करने पर विचार कर रही है, जो अब तक बनी सभी समितियों की सिफारिशों का समेकित मूल्यांकन करेगी। यह समिति यह भी जांच करेगी कि पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के गैप में नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है या नहीं, और यदि दी जाए तो ऐसे संरचनात्मक मानक क्या हों ताकि पर्यावरणीय निरंतरता को नुकसान न पहुंचे।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सौ मीटर ऊंचाई की सीमा को अरावली की पहचान का आधार मानना वैज्ञानिक रूप से कितना सही है, इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। इसके लिए विस्तृत भू-वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता बताई गई।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि अरावली राज्यों को पहले ही सभी खनन गतिविधियां रोकने के निर्देश दिए जा चुके हैं। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया है कि नई खनन लीज कहीं भी जारी न हों।

कोर्ट ने अपने आदेश में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस परमेश्वर से भी सहयोग मांगा है, विशेषकर प्रस्तावित विशेषज्ञ समिति की संरचना को लेकर।

यह उल्लेखनीय है कि 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाले भू-आकृतियों को ही अरावली माना गया था, देशभर में चिंता बढ़ गई थी। राजस्थान के उदयपुर, जोधपुर, सीकर और अलवर जैसे जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए।

इसके बाद केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और आईसीएफआरई को अतिरिक्त नो-माइनिंग जोन चिन्हित करने तथा सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी।

Point of View

बल्कि भविष्य में इसी तरह के मुद्दों पर भी एक दिशा प्रदान करेगा।
NationPress
29/12/2025

Frequently Asked Questions

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर रोक क्यों लगाई?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस संवेदनशील मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है, क्योंकि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और अदालत की टिप्पणियों को विभिन्न तरीकों से समझा और प्रस्तुत किया जा रहा था।
नई विशेषज्ञ समिति का उद्देश्य क्या होगा?
नई विशेषज्ञ समिति का उद्देश्य सभी पूर्व समितियों की सिफारिशों का समेकित मूल्यांकन करना और पर्यावरणीय निरंतरता को ध्यान में रखते हुए खनन की संभावनाओं पर विचार करना है।
अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियाँ कब तक रोकी जाएंगी?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, जब तक नई विशेषज्ञ समिति का गठन नहीं होता, तब तक सभी खनन गतिविधियाँ रोक दी जाएंगी।
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