क्या असद भोपाली एक ऐसी शख्सियत हैं, जो बेहतरीन गीतकार और मशहूर शायर थे?

सारांश
Key Takeaways
- असद भोपाली ने 100 से अधिक फिल्मों के लिए गीत लिखे।
- उनका जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल में हुआ।
- उनके गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीते हैं।
नई दिल्ली, 9 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। असद भोपाली, जो अपनी कलम से हिंदी सिनेमा में जादू बिखेरने वाले शायर और गीतकार हैं, की जयंती 10 जुलाई को मनाई जाएगी। उनके प्रसिद्ध गीत 'वो जब याद आए, बहुत याद आए' और 'कबूतर जा जा जा' आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं। उर्दू की नज्मों में गहरी भावनाएं और फिल्मी गीतों में रोमांस और हल्की मस्ती बिखेरने वाले असद भोपाली का प्रभाव अद्वितीय है।
असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल में हुआ। उनका असली नाम असदुल्लाह खान था। वह मुंशी अहमद खान के सबसे बड़े बेटे थे, जो अरबी और फारसी के शिक्षक थे। भोपाल की सांस्कृतिक परंपरा में बड़े हुए असद को बचपन से ही शायरी का शौक था। उनकी प्रतिभा 1949 में तब उजागर हुई, जब फिल्म निर्माता फजली ब्रदर्स ने उन्हें एक मुशायरे में देखा। उस समय, उनकी फिल्म ‘दुनिया’ के गीतकार आरजू लखनवी पाकिस्तान चले गए थे, और भोपाल के सिनेमा थिएटर के मालिक सुगम कपाड़िया की सलाह पर फजली ब्रदर्स ने असद को अपनी फिल्म के लिए चुना, इस तरह 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने मुंबई में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।
असद भोपाली ने 1949 से 1990 के बीच 100 से अधिक फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनकी कलम ने रोमांस से लेकर हल्के-फुल्के और मजेदार गीतों तक हर रंग को छुआ। उनकी पहली बड़ी सफलता 1963 की फिल्म ‘पारसमणी’ थी, जिसमें उनके गीत 'वो जब याद आए, बहुत याद आए' (लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी) और 'हंसता हुआ नूरानी चेहरा' (लता मंगेशकर, कमल बारोट) सुपरहिट हुए। ये गीत आज भी रेडियो और म्यूजिक लवर्स की प्लेलिस्ट में शामिल हैं।
उन्होंने उषा खन्ना, श्याम सुंदर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र और कल्याणजी-आनंदजी जैसे संगीतकारों के साथ काम किया। उनके कुछ उल्लेखनीय गीतों में 'उस्तादों के उस्ताद' का 'सौ बार जनम लेंगे' और ‘एक नारी दो रूप’ का 'दिल का सूना साज तराना ढूंढेगा' शामिल हैं। 1989 में आई सलमान खान-भाग्यश्री स्टारर फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि रही, जिसमें 'दिल दीवाना बिन सजना के माने ना' और 'कबूतर जा जा जा' जैसे गीत शामिल थे।
‘मैंने प्यार किया’ के गीत 'दिल दीवाना' के लिए असद भोपाली को 1990 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। हालांकि, पैरालिसिस के कारण वह अवॉर्ड फंक्शन में शामिल नहीं हो सके। 9 जून 1990 को उनका निधन हो गया।
असद भोपाली का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्हें बड़े बजट की फिल्मों में कम मौके मिले। समकालीन गीतकारों की तुलना में उनकी प्रसिद्धि सीमित रही। अभिनेत्री तबस्सुम ने बताया था कि असद अक्सर कहते थे कि उनकी जिंदगी भर की सबसे वफादार साथी “गुर्बत” (गरीबी) रही।
असद ने दो शादियां कीं। पहली पत्नी आयशा से उनके दो बेटे (ताज और ताबिश) और छह बेटियां थीं। दूसरी पत्नी से उनका एक बेटा गालिब असद भोपाली हुआ।
उर्दू शायरी में असद की रचनाएं गहरी संवेदनाओं से भरी हैं। उनके 1952 में आए 'मोती महल' के गीत 'जाएगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा, दो गज कफन का टुकड़ा तेरा लिबास होगा' में उनकी शायरी की सादगी और गहराई का अद्भुत मेल है, जो उन्हें हिंदी सिनेमा और उर्दू साहित्य में विशेष स्थान देता है।