क्या ‘बैंडिट क्वीन’ का जादुई किस्सा है? नुसरत फतेह अली खान ने शेखर कपूर की 'आंखें पढ़ीं' और गाया अनोखा गीत

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क्या ‘बैंडिट क्वीन’ का जादुई किस्सा है? नुसरत फतेह अली खान ने शेखर कपूर की 'आंखें पढ़ीं' और गाया अनोखा गीत

सारांश

क्या आपने कभी सोचा है कि एक गायक अपनी कला के लिए क्या-क्या कर सकता है? नुसरत फतेह अली खान की एक अद्भुत कहानी सामने आई है, जब उन्होंने शेखर कपूर की आंखों में देखकर गाया एक अनोखा गीत। जानिए इस जादुई अनुभव के पीछे की सच्चाई।

Key Takeaways

  • नुसरत फतेह अली खान की आवाज़ में अद्भुत जादू था।
  • उन्होंने सूफी संगीत को एक नई पहचान दी।
  • उनकी कव्वालियां आत्मा की पुकार थीं।
  • उनकी कला ने फिल्मों में भी गहरी छाप छोड़ी।
  • उनका योगदान आज भी जीवंत है।

मुंबई, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। संगीत की दुनिया में कुछ आवाज़ें ऐसी होती हैं, जो समय, सरहद और संस्कृति की दीवारों को तोड़ देती हैं। नुसरत फतेह अली खान ऐसी ही एक आवाज़ थे। एक ऐसी शख्सियत जिन्हें ‘शहंशाह-ए-कव्वाली’ कहा जाता है।

13 अक्टूबर 1948 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में जन्मे नुसरत ने सूफी संगीत को न सिर्फ जीवंत किया, बल्कि उसे वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। उनकी आवाज़ में जादू था, वह जुनून, वह रूहानियत, जो सुनने वाले को एक आध्यात्मिक सफर पर ले जाती थी।

नुसरत साहब की कव्वालियां, ‘दम मस्त मस्त’, ‘अल्लाह हू’, ‘इक पल चैन न आए’, केवल गीत नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार थीं। उनकी गायकी में सूफियाना अंदाज और रागों की गहराई का ऐसा मेल था कि श्रोता खो जाता था। सैंकड़ों साल पुरानी कव्वाली परंपरा को उन्होंने नई पीढ़ी तक पहुंचाया और उसे पश्चिमी संगीत के साथ जोड़कर एक अनोखा रंग दिया।

उन्होंने हॉलीवुड फिल्म ‘डेड मैन वॉकिंग’ के एक सीन में ऐसा आलाप दिया कि वह फिल्म का बेस्ट सीन बन गया। उनके लाइव परफॉर्मेंस एक जादुई अनुभव होते थे। मंच पर नुसरत का जोश, उनकी आंखों में चमक और हाथों की लयबद्ध थिरकन, यह सब मिलकर एक ऐसी दुनिया रचता था, जहां हर श्रोता खुद को सूफी संगीत में डूबा पाता। उनकी आवाज़ में वह शक्ति थी जो दिलों को जोड़ती थी, चाहे वो लंदन के कॉन्सर्ट हॉल हों या लाहौर की संकरी गलियां।

नुसरत साहब की आवाज़ में ऐसा जादू था जो श्रोताओं को सीधे खुदा से जोड़ देता था। उनके ऊपर कई किताबें लिखी गईं, लेखक अहमद अकील रूबी ने अपनी किताब ‘नुसरत फतेह अली खान: ए लिविंग लेजेंड’ में उनके करियर से जुड़े कई किस्से साझा किए हैं। इसमें उनकी कला के प्रति उनकी समर्पण और गहराई को दर्शाता एक किस्सा भी साझा किया गया है। यह किस्सा भारतीय फिल्म निर्देशक शेखर कपूर से जुड़ा है, जब वह अपनी बहुचर्चित फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ के लिए बैकग्राउंड स्कोर पर काम कर रहे थे।

फिल्म का विषय और दृश्य बेहद संवेदनशील थे, खासकर बेहमई नरसंहार और उसके बाद के महिलाओं के दर्द को दर्शाने वाले सीन। ऐसे दृश्यों के लिए एक गहरे, आध्यात्मिक और हृदय विदारक संगीत की जरूरत थी। इस काम के लिए नुसरत साहब को चुना गया।

स्टूडियो में रिकॉर्डिंग के दौरान नुसरत साहब ने शेखर कपूर के सामने एक हैरान कर देने वाली शर्त रखी। उन्होंने कहा, “शेखर जी, आप अपनी फिल्म देखिए और मैं आपकी आंखों में देखकर गाऊंगा।”

शेखर कपूर ने उनकी बात मान ली। नुसरत साहब ने अपनी आंखें शेखर कपूर की आंखों पर टिका दीं। जैसे ही रिकॉर्डिंग शुरू हुई, एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। शेखर कपूर ने महसूस किया कि नुसरत साहब महज धुन नहीं लगा रहे थे, बल्कि उनकी आत्मा को पढ़ रहे थे। शेखर कपूर उस क्षण में अपनी फिल्म के किरदारों, उनके दर्द और अपने व्यक्तिगत जीवन के गहरे रिश्तों को याद कर रहे थे। नुसरत साहब की आवाज़ में वह दर्द, वह तड़प और वह रूहानियत उतर आई थी जो उन दृश्यों की मांग थी।

शेखर कपूर ने बाद में इस पल को याद करते हुए कहा था कि यह एक साधारण रिकॉर्डिंग सेशन नहीं था, बल्कि एक आध्यात्मिक संवाद था, जिसने संगीत के माध्यम से आत्मा को छू लिया।

यह किस्सा इस बात का प्रमाण है कि नुसरत फतेह अली खान महज एक गायक नहीं थे। वह अपनी कला को किसी भी तकनीक या माइक पर निर्भर नहीं करते थे। उनका गायन भावनाओं, ऊर्जा और रूहानियत का सीधा प्रसारण था।

1997 में सिर्फ 48 साल की उम्र में नुसरत इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी विरासत आज भी उतनी ही जीवंत है। उनकी रिकॉर्डिंग्स, उनके गीत, और उनकी रूहानी आवाज़ आज भी लाखों दिलों में गूंजती है।

Point of View

हम यह मानते हैं कि नुसरत फतेह अली खान का योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य है। उनकी कला ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में सूफी संगीत को नई पहचान दी है। उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरित करते हैं कि कला की शक्ति कभी भी सीमाओं को नहीं मानती।
NationPress
12/10/2025

Frequently Asked Questions

नुसरत फतेह अली खान की सबसे प्रसिद्ध कव्वाली कौन सी है?
नुसरत फतेह अली खान की सबसे प्रसिद्ध कव्वालियों में 'दम मस्त मस्त' और 'अल्लाह हू' शामिल हैं।
नुसरत फतेह अली खान का जन्म कब और कहां हुआ था?
नुसरत फतेह अली खान का जन्म 13 अक्टूबर 1948 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था।
'बैंडिट क्वीन' फिल्म में नुसरत फतेह अली खान का योगदान क्या था?
नुसरत फतेह अली खान ने 'बैंडिट क्वीन' के लिए बैकग्राउंड स्कोर गाया, जिसमें उन्होंने शेखर कपूर की आंखों में देखकर गाया।
नुसरत फतेह अली खान का निधन कब हुआ?
नुसरत फतेह अली खान का निधन 1997 में हुआ, जब वह केवल 48 वर्ष के थे।
नुसरत फतेह अली खान की कला का क्या महत्व है?
उनकी कला ने सूफी संगीत को वैश्विक पहचान दी और उनकी आवाज़ ने लोगों के दिलों को छू लिया।