क्या 'ह्यूमन्स इन द लूप' फिल्म तकनीक और संस्कृति पर सोचने को मजबूर करती है?

सारांश
Key Takeaways
- तकनीक और संस्कृति के बीच का संबंध महत्वपूर्ण है।
- आदिवासी समुदाय की पहचान को समझना आवश्यक है।
- नई तकनीक हमारी पुरानी ज्ञान प्रणाली को चुनौती दे सकती है।
मुंबई, ६ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्तमान में तकनीक ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी मशीनों की समझ को विकसित करने वाली तकनीक, तेजी से प्रगति कर रही है। लेकिन क्या यह नई तकनीक सभी समाजों और संस्कृतियों के लिए उपयुक्त है? विशेषकर हमारे देश के आदिवासी समुदाय की अद्वितीय पहचान, संस्कृति और ज्ञान प्रणाली को यह तकनीक समझ पाती है या नहीं? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर की खोज में एक नई फिल्म आई है, जिसका शीर्षक है 'ह्यूमन्स इन द लूप'।
यह फिल्म झारखंड की एक आदिवासी महिला, नेहमा की कहानी प्रस्तुत करती है। नेहमा एआई डेटा लेबलर के रूप में कार्यरत है, जिसका अर्थ है कि वह मशीनों को समझाने के लिए आवश्यक डेटा तैयार करती है। यह फिल्म यह दर्शाती है कि कैसे तकनीक और पारंपरिक ज्ञान के बीच संघर्ष और समझ का मुद्दा हमारे समाज में गहराई से जुड़ा हुआ है।
इस फिल्म की कार्यकारी निर्माता, किरण राव, ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, "हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली सदियों से हमारे समाज में विद्यमान है। सवाल यह है कि क्या हम इस नई इंटेलिजेंस को पुरानी संस्कृति पर प्राथमिकता दे पाएंगे? और क्या यह नई तकनीक, जो मुख्यतः विकासशील और पश्चिमी देशों के दृष्टिकोण से विकसित की गई है, हमारे एशियाई देशों और भारत के भीतर मौजूद विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों की सही पहचान कर सकेगी? हमारी संस्कृति और ज्ञान प्रणाली क्या इस तकनीक में समाहित होगी? क्या यह उसे सही तरीके से प्रस्तुत कर सकेगी? यह हमारे भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। इसलिए इस विषय पर चर्चा और जागरूकता आवश्यक है।"
आदिवासी सिनेमा के प्रसिद्ध फिल्मकार बीजू टोप्पो ने भी इस विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, "पूरी दुनिया डिजिटल हो गई है। इस समय तकनीक के कारण कई चीजें सरल हो गई हैं और कई बार कठिन भी। फिल्म की मुख्य पात्र, नेहमा, सीखने और समझने की कोशिश कर रही है। पूरी दुनिया एआई के पीछे भाग रही है, ऐसे में आदिवासी समुदाय को भी मजबूरन इसे अपनाना पड़ रहा है। लेकिन आदिवासी जीवनशैली और एआई का कार्य करने का तरीका काफी भिन्न है। इसी पर यह फिल्म आधारित है।"
किरण राव ने कहा, "यह फिल्म तकनीक और संस्कृति के बीच संबंधों पर सोचने को मजबूर करती है और हमें अपने समाज के उन हिस्सों को समझने का अवसर देती है जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।"
फिल्म 'ह्यूमन्स इन द लूप' ५ सितंबर से मुंबई के सिनेपोलिस अंधेरी में और १२ सितंबर से दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, तिरुवनंतपुरम और बेंगलुरु में प्रदर्शित की जाएगी। इसके वितरण के लिए म्यूजियम ऑफ इमेजिन्ड फ्यूचर्स के इम्पैक्ट डिस्ट्रीब्यूशन फंड का समर्थन प्राप्त हुआ है, जो फिल्म को अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुँचाने में सहायक होगा।