क्या लच्छू महाराज ने बनारस के तबला वादन में फिल्मी जगत का जादू बिखेरा?

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क्या लच्छू महाराज ने बनारस के तबला वादन में फिल्मी जगत का जादू बिखेरा?

सारांश

लच्छू महाराज, जो भारतीय संगीत के दिग्गज तबला वादक थे, ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी संगीत का जादू बिखेरा। उनकी फिल्मी यात्रा और संगीत के प्रति उनकी गहरी भावना उन्हें एक अद्वितीय कलाकार बनाती है।

Key Takeaways

  • लच्छू महाराज भारतीय संगीत के महान तबला वादक थे।
  • उन्होंने फिल्मों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया।
  • उनका असली नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था।
  • उन्होंने पंडित बिंदादीन महाराज से तबला वादन सीखा।
  • उनका जीवन संगीत के प्रति उनकी गहरी प्रेम कहानी है।

मुंबई, 15 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध तबला वादक पंडित लच्छू महाराज का नाम भारतीय संगीत के क्षेत्र में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वे एक ऐसे कलाकार रहे हैं जिन्होंने अपनी कला की गहराई से न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी अपना नाम रोशन किया।

वह केवल एक महान तबला वादक ही नहीं बल्कि उनके जीवन का एक और पहलू था, जो कम लोगों को ज्ञात है। वह था मुंबई के फिल्मी जगत से उनका जुड़ाव। फिल्मों में तबला बजाने वाले कलाकारों में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई और एक सितारे की तरह चमके। फिर भी, उन्होंने खुद को कभी फिल्मों का कलाकार नहीं समझा, बल्कि एक सच्चे संगीत साधक के रूप में देखा, जो संगीत को दिल से जीते और समझते थे। यह पहलू उनकी कला को और भी खास बनाता है।

लच्छू महाराज का जन्म 16 अक्टूबर 1944 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ। उनका असली नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था, लेकिन संगीत की दुनिया में वे लच्छू महाराज के नाम से मशहूर हुए। उनके पिता का नाम वासुदेव महाराज था। उनके परिवार में कुल 12 भाई-बहन थे, और लच्छू महाराज चौथे नंबर के थे। बचपन से ही उन्हें संगीत का गहरा शौक रहा।

उन्होंने तबला वादन की शिक्षा अपने चाचा पंडित बिंदादीन महाराज से ली, जो खुद एक कुशल संगीतज्ञ थे। उनके गुरु से मिली सख्त और परिष्कृत प्रशिक्षण ने लच्छू महाराज को तबला वादन की बारीकियों में पारंगत बना दिया। इसके अलावा, उन्होंने पखवाज और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की भी गहरी समझ विकसित की। उनकी मेहनत और लगन के कारण जल्दी ही वे बनारस घराने के प्रमुख तबला वादक बन गए।

मुंबई आने के बाद लच्छू महाराज ने अपनी कला को फिल्मों में प्रस्तुत किया। 1949 में 'महल' फिल्म में तबला वादन के साथ उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। इसके बाद वे 'मुगल-ए-आजम' (1960), 'छोटी-छोटी बातें' (1965), 'पाकीजा' (1972) जैसी कई प्रसिद्ध फिल्मों में तबला वादन करते नजर आए। इन फिल्मों की धुनों में उनकी तबला की थाप ने जान डाल दी और संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया। हालांकि, फिल्मों के इस चमकदार मंच पर होने के बावजूद, लच्छू महाराज ने कभी खुद को सिर्फ एक फिल्मी कलाकार के रूप में नहीं देखा। वे हमेशा खुद को एक संगीत साधक मानते थे, जिनके लिए संगीत आत्मा की आवाज है, न कि केवल दर्शकों का मनोरंजन।

उन्होंने कई बड़े संगीत समारोहों में देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 1972 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। उनका कहना था कि श्रोताओं की तालियां और प्यार ही कलाकार के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।

लच्छू महाराज का जीवन केवल संगीत तक ही सीमित नहीं था। उनका परिवार भी कला और मनोरंजन से जुड़ा था। उनकी बहन निर्मला देवी गोविंदा की मां थीं, जो बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता हैं। लच्छू महाराज ने फ्रांस की महिला टीना से शादी की और उनकी एक बेटी नारायणी है।

27 जुलाई 2016 को उनका निधन हार्ट अटैक के चलते हुआ। मुंबई के फिल्मी पर्दे से लेकर विश्व के बड़े मंचों तक, उनका सफर काफी प्रेरणादायक रहा। उन्होंने अपनी कला से संगीत प्रेमियों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है।

Point of View

बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसे प्रमोट किया। उनकी कला और प्रतिबद्धता सभी संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
NationPress
15/10/2025

Frequently Asked Questions

लच्छू महाराज का असली नाम क्या था?
लच्छू महाराज का असली नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था।
लच्छू महाराज ने किससे तबला वादन की शिक्षा ली?
उन्होंने तबला वादन की शिक्षा अपने चाचा पंडित बिंदादीन महाराज से प्राप्त की।
लच्छू महाराज का जन्म कब हुआ?
लच्छू महाराज का जन्म 16 अक्टूबर 1944 को हुआ।
लच्छू महाराज ने कौन-कौन सी फिल्मों में तबला वादन किया?
उन्होंने 'महल', 'मुगल-ए-आजम', 'छोटी-छोटी बातें', और 'पाकीजा' जैसी कई फिल्मों में तबला वादन किया।
उनका निधन कब हुआ?
लच्छू महाराज का निधन 27 जुलाई 2016 को हुआ।