क्या मणि कौल की पारखी नजर ने फिल्म के हर फ्रेम को खास बनाया?
सारांश
Key Takeaways
- मणि कौल ने हर फिल्म के हर फ्रेम पर ध्यान दिया।
- उन्होंने भारतीय और विदेशी साहित्य से प्रेरणा ली।
- उनकी फिल्में नई तकनीक और प्रयोगों से भरी थीं।
- उन्होंने कम बजट में भी बड़ी फिल्में बनाई।
- उनका योगदान सिनेमा की दुनिया में अमिट रहेगा।
मुंबई, 24 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्देशक मणि कौल सिनेमा के असली प्रेमी थे। उनके लिए फिल्में मात्र मनोरंजन नहीं, बल्कि कला, भावनाओं और विचारों का एक माध्यम थीं। वह घंटों-घंटों तक फिल्में देखते थे। चाहे वह रोमांस हो या कॉमेडी, मणि कौल हर फिल्म के हर फ्रेम पर ध्यान देते और उसमें छिपे नए प्रयोग को समझने का प्रयास करते।
उन्होंने अपने इस सिनेमा के प्रति प्रेम और गहरी समझ के साथ भारतीय फिल्म उद्योग में एक अद्वितीय पहचान बनाई।
मणि कौल का जन्म 25 दिसंबर 1944 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ। वह एक कश्मीरी परिवार से थे और बचपन से ही कला और साहित्य में गहरी रुचि रखते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय से स्नातक किया और फिल्म बनाने का सपना देखा। इसके लिए वह पुणे के फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) पहुंचे, जहां उन्होंने निर्देशक ऋत्विक घटक से अभिनय और निर्देशन का प्रशिक्षण लिया।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1969 में फिल्म 'उसकी रोटी' से की। यह फिल्म उनके लिए केवल पहला प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि नए सिनेमा प्रयोगों की शुरुआत थी। उनकी फिल्मों की विशेषता यह थी कि वे छोटी-छोटी चीजों को भी बड़े ध्यान से पेश करते थे। वह हर दृश्य को समझते, रंगों और कैमरे के हर प्रयोग को नोट करते और उसी से अपनी फिल्म की नई तकनीक को सीखते थे।
उनकी अगली फिल्म 'आषाढ़ का एक दिन' (1971) मोहन राकेश के नाटक पर आधारित थी। इसके बाद 1973 में उन्होंने 'दुविधा' बनाई, जिसे समानांतर सिनेमा का एक मील का पत्थर माना गया। इस फिल्म में एक नवविवाहित महिला की कहानी है, जिसमें उसका पति शादी के अगले दिन ही व्यापार के लिए घर छोड़ देता है और बीच में भूत के रूप में लौटता है। मणि कौल ने इस फिल्म में हर दृश्य को बहुत ध्यान से शूट किया।
उन्होंने केवल भारतीय साहित्य पर आधारित फिल्में नहीं बनाई, बल्कि रूसी और यूरोपीय सिनेमा से भी प्रभावित होकर नई तकनीकें अपनाईं। उन्हें रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की कहानियों से भी गहरी प्रेरणा मिली। उनकी फिल्म 'इडियट' इसी का उदाहरण है। उनके लिए हर फ्रेम, हर कैमरा एंगल और हर दृश्य किसी नई कहानी की तरह था।
मणि कौल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से दो बार सम्मानित किया गया। 1974 में उन्हें 'दुविधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 1989 में उनकी डॉक्यूमेंट्री 'सिद्धेश्वरी' को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, उन्होंने चार बार फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड भी जीते। उनके करियर में कम बजट में भी बड़ी फिल्में बनाने की कला और नए प्रयोगों के लिए हमेशा सराहना मिली।
मणि कौल का निधन 6 जुलाई 2011 को हरियाणा के गुरुग्राम में हुआ।